नागपुर,: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय संस्कृति में कर्म को ‘‘धर्म’’ के बराबर माना जाता है और इसे एक ‘विनिमय अनुबंध’ के रूप में नहीं देखा जाता है।

उन्होंने यहां आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, ‘‘यहां (हमारी संस्कृति में) कर्म धर्म है, कोई अनुबंध नहीं।’’

उन्होंने कहा कि प्रचलित दृष्टिकोण यह है कि यदि अनुबंध से संबंधित एक पक्ष अपनी प्रतिबद्धता को पूरा नहीं करता है, तो दूसरा पक्ष भी इसे पूरा करने से इनकार कर देगा।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन यह दृष्टिकोण अब बदल रहा है और हमने अपने तरीके से सोचना शुरू कर दिया है।’’

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि समाज सेवा यह सोचे बिना की जानी चाहिए कि समाज के अन्य सदस्य मदद करेंगे या नहीं, और अगर यह ईमानदारी और नेक इरादे से की जाती है, तो लोग मदद के लिए जरूर आगे आएंगे।