उज्जैन, 26 नवंबर(हि. स.)। श्री महाकालेश्वर मंदिर से बाबा महाकाल की पालकी लाव-लश्कर के साथ शनिवार रात्रि , बैकुंण्ठ चतुर्दर्शी को महाकाल मंदिर से गोपाल मंदिर पहुंची। शनिवार-रविवार की दरमियानी रात हरि-हर मिलन हुआ। यह प्राचीन मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के पश्यात बैकुंण्ठ चतुर्दशी पर श्री हर (श्री महाकालेश्वर भगवान ) श्री हरि (श्री द्वारकाधीश) को सृष्टि का भार सौंपते हैं। देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करने जाते हैं। उस समय पृथ्वी लोक की सत्ता शिव के पास होती है और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यह सत्ता पुनः श्री विष्णु को सौंप कर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं। इस दिवस को बैकुंठ चतुर्दशी की रात्रि में हरि-हर मिलान कहते है।

श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक एवं अपर कलेक्टर संदीप कुमार सोनी ने बताया कि परम्परा अनुसार श्री महाकालेश्वर मंदिर के सभामंडप से रात्रि 11 बजे श्री महाकालेश्वर भगवान की पालकी धूम-धाम से गुदरी चौराहा, पटनी बाजार होते हुए गोपाल मंदिर पहुंची। जहां पूजन के दौरान बाबा श्री महाकालेश्वर ने बिल्व पत्र की माला गोपाल को भेंट की एवं श्री हरि ने तुलसी की माला बाबा श्री महाकाल को भेंट की। दोनों भगवान की पूजा विधि से एक-दूसरे का पूजन किया गया।इसके उपरांत श्री महाकालेश्वर की सवारी सोमवार अर्धरात्रि पुन: महाकालेश्वर मंदिर वापस पहुंची।