आर्थिक सशक्तीकरण के साथ सामाजिक विकास में भी भागीदार बना जीविका



बेगूसराय, 25 नवम्बर (हि.स.)। ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार के माध्यम से आर्थिक समृद्ध बनाने के लिए चल रही जीविका योजना ना केवल आत्मनिर्भरता का श्रोत बन गया है। बल्कि, यह महिलाओं को पहचान और आवाज दे रहा है। आज महिलाएं उद्यमी बन रही हैं, कृषि और पशुपालन कर रही है, ग्रामीण बाजार चला रही हैं।



बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद इससे प्रभावित परिवारों एवं अत्यंत निर्धन परिवारों को जीविकोपार्जन के स्थायी साधन उपलब्ध कराने के लिए अगस्त 2018 में सतत जीविकोपार्जन योजना शुरू की गई। इस योजना का मुख्य उद्देश्य शराबबंदी से प्रभावित परिवारों के साथ-साथ समाज के अत्यंत निर्धन परिवारों को जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराते हुए, उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल करना था। जिसमें सफल है।



इस योजना के तहत लाभार्थी परिवारों को जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके साथ ही इन परिवारों को इतना सक्षम बनाया जाता है, जिससे वे जीविकोपार्जन के इन साधनों का संचालन स्वयं कर सकें और इससे आय अर्जित कर आत्मनिर्भर बन सकें। बिहार सरकार ने जिस उद्देश्य के साथ सतत जीविकोपार्जन योजना की शुरुआत की थी, वह अब फलीभूत होता हुआ दिख रहा है।



इसका सकारात्मक परिणाम है कि ग्रामीण क्षेत्र में शुरू की गई इस योजना की सफलता को देखते हुए अब इसे शहरी क्षेत्र में भी लागू किया जा रहा है। शहरी क्षेत्र के लाभुक इस योजना से लाभान्वित हो रहे हैं। सतत जीविकोपार्जन योजना ने अत्यंत निर्धन परिवारों को विकास की मुख्य धारा से जोड़कर उनके चेहरे पर मुस्कान लाने में सफलता पाई है। समाज के ऐसे निर्बल परिवारों को जीविकोपार्जन गतिविधियों से जोड़कर आर्थिक रूप से सबल बनाया गया है।



अब वे आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। सतत जीविकोपार्जन योजना के सफल क्रियान्वयन में जीविका सामुदायिक संगठनों की उल्लेखनीय भूमिका रही है। योजना के लिए लक्षित परिवारों की पहचान, लाभार्थी परिवारों को योजना के तहत वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने तथा जीविकोपार्जन के साधनों के सृजन में सामुदायिक संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। स्थानीय स्तर पर जीविका महिला ग्राम संगठन के नेतृत्व में सामुदायिक संसाधन सेवियों द्वारा अत्यंत गरीब परिवारों की पहचान की जाती है।



इसके साथ ही ग्राम संगठन के माध्यम से लाभार्थी परिवारों को योजना के तहत वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। खास बात यह है कि जीविकोपार्जन का चयन लाभार्थी परिवारों की योग्यता, क्षमता और उनकी इच्छा के अनुसार किया जाता है। आज राज्य भर में सतत जीविकोपार्जन योजना की मदद से एक लाख 67 हजार लाभार्थी परिवारों द्वारा किराना दुकान, श्रृंगार दुकान, कपड़ा दुकान, नाश्ता दुकान, अंडा, फल एवं सब्जी की दुकान जैसे सूक्ष्म व्यवसाय किया जा रहा हैं।



इसके अलावा बकरी, पालन, गाय पालन, मुर्गी पालन आदि गतिविधियों का संचालन सफलतापूर्वक किया जा रहा है। कई परिवारों के द्वारा सूक्ष्म व्यवसाय के साथ-साथ पशुपालन का भी कार्य किया जा रहा है। वर्तमान समय में राज्य के कई गांवों में सतत जीविकोपार्जन योजना संपोषित सूक्ष्म उद्यम का संचालन किया जा रहा है। इस योजना के तहत लाभार्थी परिवारों द्वारा निर्मित वस्तुओं की बिक्री के लिए रिटेल चेन एवं क्लस्टर आधारित उद्यमों का भी विकास किया जा रहा है।



गरीब परिवारों ने इस योजना की मदद से जीविकोपार्जन के विविध साधनों को अपनाकर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया है। एक समय था जब इनके घरों में दो वक्त की रोटी का भी संकट था। कई ऐसे परिवार थे, जो पहले दूसरों के घरों में मांगकर गुजारा किया करते थे। लेकिन अब इस योजना की मदद से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनकर उन्होंने समाज में एक नई पहचान बनायी है। इन परिवारों को अब राशन कार्ड, बीमा, आवास योजना, स्वच्छ जल, शौचालय जैसी सुविधाओं का भी लाभ मिल रहा है।



बेगूसराय में जीविका के उपलब्धि की बात करें तो यहां पांच दीदी की रसोई चल रही है, जिसमें 34 दीदी जुड़ी हुई हैं। पांच ग्रामीण बाजारों में 346 दीदी को रोजगार मिल रहा है। 27 मधु उत्पादक समूह में 651 परिवार जुड़े हुए हैं। एक लाख 75 हजार 828 परिवार कृषि कार्य तथा 81 हजार 216 परिवार पशुपालन कार्य कर रहे हैं। 76 हजार 62 परिवार गैर कृषि कार्यों से जुड़े हैं तो समूह के दो लाख 74 हजार 328 सदस्यों का आधार सीडिंग हो गया है। सिलाई उत्पादन सह प्रशिक्षण केंद्र से 75 परिवार जुड़े हुए हैं।



यहां 64 कृषि उत्पादन समूह एवं 466 वीआरपी हैं, कृषि उत्पादन समूहों में 2693 किसान जुड़े हुए हैं तथा कृषि उद्यमियों की संख्या 96 है। 14 किसान सूचना एवं प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं एवं 27 कृषि यंत्र बैंक भी चल रहा है। पोषित समाज-पोषित भारत के लिए 86964 पोषण बगीचा बनाए जा चुके हैं। जहर मुक्त खान-पान के लिए 791 दीदी हरित खाद का उत्पादन एवं उपयोग किया जा रहा है। अब तक 1553 मेट्रिक टन हरित खाद का उत्पादन किया गया, जिसमें से 1276 मेट्रिक टन का उपयोग खेतों में किया जा चुका है।