बलरामपुर, 13 अप्रैल (हि.स.)। नेपाल के दांग-चोखड़ा से युगों-युगों से आ रही प्रसिद्ध पीर रतन नाथ योगी (पात्र देवता) की धार्मिक यात्रा कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच शनिवार को चैत्र नवरात्रि की पंचमी को परंपरागत ढंग से शक्तिपीठ मंदिर देवी पाटन पहुंची है।

इस यात्रा में हजारों की संख्या में नेपाल व भारत के श्रद्धालु शामिल हुए हैं। यात्रा में नेपाल के विभिन्न धार्मिक संगठनों के द्वारा नेपाली संस्कृति को लेकर कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। यात्रा की सुरक्षा को लेकर स्थानीय पुलिस के अलावा पंजाब पुलिस को भी लगाया गया।



पीर रतन नाथ योगी की यात्रा नगर तुलसीपुर की सीमा नकटी नाले पर पहुंचते ही यात्रा के दर्शन के लिए क्षेत्र के कोने-कोने से पहुंचे हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के जय घोष से क्षेत्र गुंजायमान हो उठा। तुलसीपुर उपजिलाधिकारी अभय सिंह वा पुलिस क्षेत्राधिकारी के अगुवाई में कड़ी सुरक्षा के बीच परम्परागत मार्गों से होते हुए यात्रा देवीपाटन मंदिर पहुंचा। पूरे रास्ते में लोगों ने अपने घरों से फूल बरसाए। निर्धारित मार्ग पर आज भोर से ही श्रद्धालु पात्र देवता के दर्शन के लिए जुटे रहे। यात्रा में विभिन्न धार्मिक संगठन के लोग शामिल हुए यात्रा में हाथी भी रहा। नेपाली संगठनों के द्वारा यात्रा में प्रस्तुत किया गया सांस्कृतिक कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र रहा। देवीपाटन मंदिर पहुंचने पर देवीपाटन पीठाधीश्वर मिथलेश नाथ योगी ने संतों के साथ यात्रा का स्वागत किया। पात्र देवता के मुख्य पुजारी द्वारा मां पाटेश्वरी का पूजन किया। आज पंचमी से नवमी तक मां पाटेश्वरी जी का पूजन देवीपाटन मंदिर भारत के पुजारी के स्थान पर परम्परा के अनुसार नेपाल मंदिर से पुजारी करेंगे। जिसको लेकर नेपाल के पुजारियों ने व्यवस्था सभाली।



देवीपाटन पीठाधीश्वर ने बताया कि यह यात्रा युगों-युगों से चली आ रही है। नेपाल के दांग चोखड़ा से आने वाली इस यात्रा को लेकर पूरे वर्ष श्रद्धालुओं को इंतजार रहता है। नेपाल से चली जा रही है यह यात्रा नेपाल भारत की रोटी-बेटी के संबंधों के साथ ही भारत के मैत्री संबंधों को भी मजबूती प्रदान कर रहा है।



क्या है इस यात्रा का इतिहास



मंदिर के पौराणिक इतिहास के अनुसार रतन नाथ योगी के तपस्या से प्रसन्न होकर मां पाटेश्वरी से उन्हें पंचमी से नवमी तक मंदिर आकर स्वयं पूजन करने का वरदान प्राप्त हुआ था। रतन नाथ योगी तभी से पंचमी से नवमी तक यहां आकर मां की आराधना करते थे। उनके शरीर छोड़ने के उपरांत उनके शिष्यों के द्वारा आज भी पत्र देवता के रूप में उनको यहां पर लाया जाता है यह यात्रा युगों-युगों से यहां चली आ रही है। जनपद व गैर जनपद के हजारों लोग नवरात्रि में इस यात्रा का इंतजार करते हैं और यात्रा दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। नेपाल से आए श्रद्धालुओं ने कहा कि भारत और नेपाल का सांस्कृतिक धार्मिक और आत्मीय संबंध सदियों से रहा है।



हिन्दुस्थान समाचार/प्रभाकर/दीपक/राजेश