लोस चुनाव : जब बरेली से जीती थी पूर्व राष्ट्रपति की बेगम

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लखनऊ, 06 मई (हि.स.)। झुमका नगरी बरेली किसी जमाने में कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी। बरेली संसदीय सीट पर हुआ पहला चुनाव कांग्रेस ने जीता था। इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर भारत के पांचवें राष्ट्रपति रहे फखरुद्दीन अली अहमद की पत्नी दो बार सांसद निर्वाचित हुई। भाजपा इस सीट को रिकार्ड 08 बार जीत चुकी है। कांग्रेस यहां 2009 के आम चुनाव में जीती थी।



1981 के पहली बार जीती बेगम आबिदा

बेगम आबिदा अहमद का मायका बदायूं के शेखूपुर में है। शेखूपुर विधानसभा क्षेत्र आंवला लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इसके बाद भी उन्होंने बरेली को अपनी कर्मभूमि बनाई। दरअसल, 1980 के चुनाव में कांग्रेस की लहर थी लेकिन जीते जनता पार्टी सेक्यूलर के मिसर यार खां। उन्होंने कांग्रेस (आई) के रामसिंह खन्ना को महज 1710 वोटों से हराया था। मिसर यार खां जीते जरूर लेकिन लोकसभा में नहीं पहुंच सके और उनका निधन हो गया। फिर 1981 में उपचुनाव हुआ जिसमें पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की पत्नी बेगम आबिदा अहमद को कांग्रेस ने बाहर से लाकर यहां मैदान में उतारा। तब एनडी तिवारी को उपचुनाव की कमान सौंपते हुए उन्हें चुनाव प्रभारी बनाया था। कांग्रेस को कामयाबी मिली।



1984 में दोबारा जीत मिली

अपने पहले कार्यकाल में ही बेगम आबिदा ने अपने सौम्य व्यवहार और वाकपटुता के चलते आम जनता के बीच अच्छी छवि बना ली थी। बाहरी प्रत्याशी होने के बावजूद जनता ने वर्ष 1984 के चुनाव में दूसरी बार भी उनको चुना था। उस दौरान विदेशी अखबार भी आबिदा बेगम पर आर्टिकल प्रकाशित करते थे। इस चुनाव में बेगम आबिदा अहमद को 45.97 फीसदी वोट मिले। दूसरे स्थान पर रहे जनता पार्टी प्रत्याशी संतोष कुमार गंगवार को 29.59 फीसदी वोट हासिल हुए। वर्ष 1984 के चुनाव से पहले इंदिरा गांधी उनके समर्थन में रैली करने के लिए नवाबगंज आई थीं। रामलीला मैदान में बनाए गए जनसभा स्थल पर दोनों हेलिकॉप्टर से एक साथ पहुंची थीं।



1989 आम चुनाव में मिली हार

वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में आबिदा बेगम को संतोष गंगवार से हार का सामना करना पड़ा था। संतोष गंगवार को इस चुनाव में 159,502 (38.16%) मत मिले थे। आबिदा बेगम को 116,337 (27.84% ) मतों से ही संतोष करना पड़ा था। उनकी हार के पीछे एक बड़ा कारण नबीरा-ए-आला हजरत मन्नानी मियां का चुनाव लड़ना भी माना जाता है। हालांकि, मन्नानी मियां 22,876 मत ही हासिल कर पाए मगर क्षेत्र में वह आबिदा बेगम के खिलाफ माहौल बनाने में कामयाब रहे थे। दरगाह परिवार से जुड़े व्यक्ति के चुनाव लड़ने की वजह से बड़ी संख्या में मुसलमानों ने आबिदा बेगम को वोट नहीं दिया था। इस हार के बाद आबिदा बेगम राजनीतिक परिदृश्य से भी गायब हो गई थीं।

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/मोहित