लोस चुनाव : सियासी विरासत संभालने में आगे पश्चिम के नेता

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मेरठ, 13 अप्रैल (हि.स.)। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी विरासत को संभालने में यहां के नेता पीछे नहीं है। अपने दादा-पिता की विरासत को कई नेता बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। इनमें से कई नेताओं की साख दांव पर लगी हुई है।



भारतीय राजनीति में परिवारवाद नई बात नहीं है। इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति भी अछूती नहीं है। यहां के नेताओं ने अपनी आने वाली पीढ़ी को सियासी विरासत सौंपी। इनमें से कई नेता इस विरासत को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। मेरठ जनपद की राजनीति में शाहिद मंजूर और अखलाक परिवार इस विरासत को आगे बढ़ा चुके हैं। सपा सरकार में पूर्व मंत्री व किठौर विधायक शाहिद मंजूर ने अपने पिता मंजूर अहमद की पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाया। मंजूर अहमद मेरठ शहर सीट से चार बार विधायक रहे। अब उनके बेटे शाहिद मंजूर चार बार किठौर से विधायक रह चुके हैं। लोकसभा में पहुंचने का उनका सपना अधूरा रहा। वह दो बार लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। शाहिद के बेटे नवाजिश इस समय जिला पंचायत सदस्य है। बसपा नेता मुनकाद अली दो बार राज्यसभा सदस्य रहे। उनकी पुत्रवधू निदा परवीन किठौर नगर पंचायत की चेयरपर्सन बन चुकी है। किठौर से विधायक रहे अब्दुल हलीम खान ने अपनी विरासत बेटे परवेज हलीम को सौंपी। वह भी किठौर से विधायक रह चुके हैं। मेरठ शहर सीट से हाजी अखलाक सपा के टिकट पर विधायक रहे। उनके बेटे शाहिद अखलाक मेरठ के महापौर और सांसद बने। शाहिद के भाई राशिद अखलक भी विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं।



सहारनपुर जनपद में रशीद मसूद सांसद और विधायक रहने के साथ ही केंद्रीय मंत्री भी रहे। उनके भतीजे इमरान मसूद विधायक रह चुके हैं और इस बार कांग्रेस से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। रशीद मसूद के बेटे शाजान मसूद भी सपा टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। यहां के दिग्गज यशपाल सिंह भी विधायक और सांसद बने। उनके बेटे भी राजनीति में सक्रिय है।

बागपत जनपद में पहले चौधरी चरण सिंह बागपत सीट से तीन बार सांसद चुने गए हैं। उनकी विरासत बेटे अजित सिंह ने संभाली और बागपत लोकसभा सीट से अलग-अलग पार्टियों से पांच बार चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे। अजित सिंह के बेटे जयंत सिंह ने मथुरा से लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन बागपत सीट से चुनाव हार गए। बागपत से ही 1969 में रघुवीर सिंह शास्त्री चुनाव जीते तो 1998 में उनके बेटे सोमपाल शास्त्री ने भाजपा के टिकट पर रालोद अध्यक्ष रहे अजित सिंह को करारी शिकस्त दी।



गाजियाबाद जनपद में लोकप्रिय नेता रहे राजपाल त्यागी मुरादनगर विधानसभा सीट से सात बार चुनाव जीते और दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। उनकी राजनीतिक विरासत को बेटे अजीतपाल त्यागी ने बखूबी संभाला है। अजीतपाल पहले जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए और इसके बाद मुरादाबाद सीट से लगातार दूसरी बार भाजपा विधायक है। 1989 में जदयू नेता केसी त्यागी ने गाजियाबाद सीट से लोकसभा चुनाव जीता। इस समय उनके बेटे अमरीश त्यागी भाजपा में सक्रिय है।



मुजफ्फरनगर जनपद में 1977 में लोकदल के सईद मुर्तजा सांसद बने। उनके बेटे सईदुज्जमां 1985 में मोरना से विधायक और 1999 में कांग्रेस के टिकट पर मुजफ्फरनगर से लोकसभा चुनाव जीते। 1974 और 1977 में मोरना से विधायक बने नारायण सिंह प्रदेश के उप मुख्यमंत्री रहे। वह लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाए। उनकी विरासत को 1996 में बेटे संजय चौहान ने सपा टिकट पर मोरना सीट से विधायक बनकर आगे बढ़ाया। संजय चौहान 2009 में बिजनौर से सांसद चुने गए। संजय चौहान के बेटे चंदन चौहान इस समय मीरापुर से विधायक है और बिजनौर से भाजपा-रालोद गठबंधन से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इसी जनपद से बघरा से विधायक रहे हरेंद्र मलिक इस समय लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं। हरेंद्र मलिक के बेटे पंकज मलिक तीन बार विधायक चुने गए हैं। इस समय चरथावल से विधायक है। अलीम आलम खान कैराना से लोकसभा सांसद चुने गए। उनके बेटे नवाजिश आलम खान 2012 में बुढ़ाना से सपा विधायक बने।



कैराना की राजनीति में अख्तर हसन का परिवार उनकी विरासत को बखूबी आगे बढ़ा रहा है। अख्तर हसन के सांसद बनने के बाद उनके बेटे मुनव्वर हसन ने बड़ी राजनीतिक पारी खेली। इसके बाद मुनव्वर की पत्नी तबस्सुम हसन सांसद बनी। मुनव्वर के बेटे नाहिद हसन इस समय कैराना से विधायक है और बेटी इकरा हसन इस बार कैराना से लोकसभा चुनाव लड़ रही है। पूर्व राज्यपाल वीरेंद्र वर्मा 1967 में कांधला से, 1969 में खतौली और 1974 में बघरा से विधायक बने। इसके बाद 1998 में भाजपा टिकट पर कैराना से लोकसभा चुनाव जीते। उनके बेटे डॉ. सतेंद्र वर्मा शामली से चुनाव हार गए। इसी तरह से पूर्व मंत्री वीरेंद्र वर्मा आठ बार विधायक रहे, लेकिन बेटा मनीश चौहान चुनाव हार चुका है। पूर्व सांसद हुकुम सिंह कई बार कैराना सीट से विधायक रहे और 2014 में सांसद चुने गए। उनकी बेटी मृगांका सिंह को भी भाजपा ने चुनाव लड़ाए, लेकिन वह हार गई।



बिजनौर जनपद में नूरपुर से सपा विधायक रामौतार सैनी है। उनके बेटा दीपक सैनी उनकी विरासत को आगे बढ़ाते हुए बिजनौर लोकसभा सीट से इस समय चुनाव लड़ रहा है। मुरादाबाद से लोकसभा सदस्य रह चुके कुंवर सर्वेश का बेटा सुशांत बढ़ापुर से विधायक है। कुंवर सर्वेश इस समय भी मुरादाबाद से भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। अमरोहा से सांसद रहे पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान प्रदेश सरकार में भी मंत्री रहे। उनके निधन के बाद पत्नी संगीता चौहान राजनीति में सक्रिय है। रामपुर जनपद में पूर्व मंत्री आजम खान के बाद उनकी पत्नी और बेटा अब्दुल्ला आजम विधायक रह चुके हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. कुलदीप/मोहित