लोस चुनाव : पहले चुनाव में डिम्पल को मिली हार, अक्षय जीते, आदित्य का पहला चुनाव

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लखनऊ, 06 मई (हि.स.)। उप्र की राजनीति में यादव परिवार परिचय का मोहताज नहीं है। यादव परिवार की तीन पीढ़िया राजनीति में हैं। देश के बड़े राजनीतिक घरानों में शुमार सैफई के यादव परिवार के जो पांच रणबांकुरे चुनावी संग्राम में पराक्रम दिखाने के लिए उतरे हैं, उनमें से तीन की परीक्षा तीसरे चरण में ही होगी।





तीसरे चरण में मैनपुरी से डिम्पल यादव, फिरोजबाद से अक्षय यादव और बदायूं सीट से आदित्य यादव मैदान में हैं। डिम्पल यादव के सियासी सफर की शुरूआत जहां हार से हुई तो वहीं अक्षय ने जीत के साथ राजनीति के मैदान में आगाज किया। वहीं आदित्य यादव पहली बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं।

पहले चुनाव में डिम्पल को हार का मुंह देखना पड़ा

सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की बहू डिम्पल यादव ने साल 2009 में कन्नौज उपचुनाव में राजनीति के क्षेत्र में कदम रखा। अखिलेश यादव 2009 में कन्नौज और फिरोजाबाद दोनों सीटों से जीतने में कामयाब रहे थे, जिसके बाद फिरोजाबाद सीट छोड़ दी। डिंपल उपचुनाव के मैदान में उतरी, लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के हाथों हार गई थीं। इस चुनाव में राजबब्बर को 312,728 वोट मिले। वहीं डिम्पल के खाते में 227,385 मत आए। जीत का अंतर 85,343 वोट रहा। 2012 में अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट से इस्तीफा दे दिया और उनकी पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध सांसद चुनी गईं। उप्र के संसदीय इतिहास में अब निर्वाचित तीन निर्विरोध सांसदों में एक डिम्पल यादव है। 2012 में कन्नौज से सांसद बनी। डिपंल 2014 में फिर से जीतने में सफल रहीं, लेकिन 2019 में कन्नौज सीट नहीं जीत सकी। पिछले चुनाव में भाजपा के सुब्रत पाठक के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।



2022 में मैनुपरी से दिल्ली पहुंची डिम्पल

सपा संस्थापक मुलायम सिंह के निधन से रिक्त मैनपुरी सीट पर हुए उपचुनाव में सपा ने यादव परिवार की विरासत की जिम्मेदारी सौंपी। डिम्पल ने 64.08 फीसदी वोट हासिल कर जीत का परचम फहराया। भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य 34.18 फीसदी वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे।



अक्षय की जीत के साथ इंट्री

सपा के वरिष्ठ नेता अक्षय यादव का राजनीति विरासत में मिली। पूर्व सांसद अक्षय यादव भी सैफई परिवार से आते हैं। अक्षय यादव समाजवादी पार्टी के प्रमुख महासचिव समाजवादी पार्टी के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे हैं। अक्षय यादव को राजनीति विरासत में मिली है। इसी कारण साल 2014 में 16वीं लोकसभा में उन्हें समाजवादी पार्टी ने फिरोजाबाद प्रत्याशी बनाया था। खास बात यह है कि अक्षय यादव ने लोकसभा चुनाव से पहले कभी भी किसी तरह का चुनाव नहीं लड़ा। साल 2014 में समाजवादी पार्टी को केवल उत्तर प्रदेश से पांच सासंद सैफई परिवार के जीते थे। उसमें एक अक्षय यादव भी थे। उन्होंने फिरोजाबाद से जीत हासिल की थी। वहीं साल 2019 के चुनाव में सपा की इस सीट को भाजपा ने छीन लिया था। हालांकि सपा की हार की वजह शिवपाल यादव ही थे। दरअसल, इस सीट पर सपा उम्मीदवार अक्षय यादव के अलावा खुद शिवपाल यादव थे, क्योंकि शिवपाल उस वक्त अपने भतीजे अखिलेश यादव से नाराज थे और उन्होंने इस सीट पर अपनी खुद की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इसी वजह से सपा का वोट दो तरफ बंट गया। और इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ चंद्रसेन जादौन ने जीत दर्ज की। 2024 में सपा ने तीसरी बार अक्षय को टिकट दिया है। उनका मुकाबला भाजपा के विश्वदीप सिंह और बसपा के चौधरी बशीर से होगा।



आदित्य यादव का पहला चुनाव

35 वर्षीय आदित्य यादव चुनावी राजनीति में कदम रखने वाले सैफई परिवार के सबसे नए सदस्य हैं। आदित्य सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव के पुत्र हैं। बदायूं सीट से चुनावी समर में उतरे आदित्य को राजनीति विरासत में मिली है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले यहां चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया था। धर्मेन्द्र 2009 व 2014 में बदायूं से बतौर सपा प्रत्याशी सांसद चुने गए थे, लेकिन 2019 में चुनाव हार गए थे। अखिलेश ने इस बार फिर उन्हें यहां से टिकट थमाया, लेकिन बाद में उन्हें आजमगढ़ से प्रत्याशी बनाकर चाचा शिवपाल सिंह यादव को बदायूं के चुनाव मैदान में उतार दिया। बाद में स्थानीय इकाई की मांग पर अखिलेश ने चाचा शिवपाल की जगह उनके पुत्र आदित्य यादव को प्रत्याशी घोषित कर दिया। भाजपा ने यहां वर्तमान सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर ब्रज क्षेत्र के अध्यक्ष दुर्विजय सिंह शाक्य को उम्मीवार बनाया है तो बसपा ने मुस्लिम खां पर भरोसा जताया है। भाजपा यहां अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए जोर लगाएगी। अब यह देखना अहम होगा आदित्य की एंट्री जीत से होगी या फिर निराशा उनके हाथ लगेगी।

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/मोहित