चैत्र नवरात्र: स्कंदमाता के दर्शन से बालरूप स्कंद भगवान के उपासना का पुण्य भी

Chaitra Navratri: The virtue of worshiping Lord S

- पांचवें दिन शक्तिपीठ विशालाक्षी और स्कंद माता के दरबार में उमड़े श्रद्धालु




वाराणसी,13 अप्रैल (हि.स.)। वासंतिक चैत्र नवरात्र के पांचवे दिन शनिवार को मीरघाट स्थित शक्तिपीठ विशालाक्षी गौरी तथा जैतपुरा स्थित स्कन्द माता के दरबार में श्रद्धालुओं ने विधिवत हाजिरी लगाई। श्रद्धालुओं ने माता के नवदुर्गा और नवगौरी स्वरूप के विग्रह पर विविध पुष्प, धूप, दीप, नैवद्य, नारियल और लाल चुनरी अर्पित कर परिवार के लिए मंगल कामना की।

इसके पहले स्थित स्कंद माता दरबार को पुजारी की देखरेख में अड़हुल, गेंदा और गुलाब के फूलों से भव्य श्रृंगार किया गया। भोर में देवी के विग्रह को पंचामृत स्नान, श्रृंगार और भोग आरती कराने के बाद मंदिर का पट खुलते ही श्रद्धालु बारी-बारी से देवी के दरबार में दर्शन पूजन करने लगे। महिलाएं पूजा की डाल नारियल, चुनरी के साथ लाइन में कतारबद्ध रही।

मंदिर के पुजारी के अनुसार भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां के इस स्वरूप को स्कंदमाता नाम से जाना जाता है। मां कमल के आसन पर विराजमान हैं। भगवान स्कंद मां के विग्रह में बालरूप में गोद में बैठे हैं। भगवान स्कंद देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना का पुण्य मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण मां की उपासना से अलौकिक तेज एवं कांति की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में गौरी पूजन में श्रद्धालुओं ने मीरघाट स्थित विशालाक्षी देवी के दरबार में पूरे आस्था के साथ हाजिरी लगाई। दरबार को सुगन्धित पुष्पों से सजाया गया था। शक्तिपीठ विशालाक्षी मंदिर सनातन धर्म के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसका वर्णन 'देवीपुराण' में भी किया गया है।

मान्यता के अनुसार यहां माता सती की आंख या 'दाहिने कान का मणि' यहां गिरा था। यहां की शक्ति 'विशालाक्षी' माता तथा भैरव 'काल भैरव' हैं। पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। 'देवीपुराण' में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। इनका महत्व कांची की मां (कृपा दृष्टा) कामाक्षी और मदुरै की (मत्स्य नेत्री) मीनाक्षी के समान है।

शास्त्रों के अनुसार काशी के कर्ता-धर्ता बाबा विश्वनाथ स्वयं मां विशालाक्षी के मंदिर में ही विश्राम करते हैं। पांचवें दिन नगर के अन्य देवी मंदिरों में भी भक्तों की भीड़ लगी रही। शीतला मंदिर में महिलाएं पचरा गा रही थीं। कुछ भक्तों ने भजनों के साथ देवी के धाम में हाजिरी लगाई। दिन भर अनुष्ठान होते रहे। चौसट्ठी घाट पर चौसट्ठी देवी के दर्शन-पूजन के लिए भक्तों का तांता लगा रहा। इसी तरह दुर्गाकुंड में भी कुष्मांडा मां के दर्शन के लिए भीड़ लगी रही। अदलपुरा की बड़ी शीतला के दर्शन के लिए भी भक्त पहुंचते रहे।



हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/मोहित