सामाजिक सद्भाव के अग्रदूत हैं संत रविदास

Saint Ravidas is the pioneer of social harmony



डॉ. रमेश ठाकुर



संत-संस्कृति और सनातन के लिए संत रविदास जयंती खास है, क्योंकि इस दिन ही संयुक्त रूप से दो पर्व एक साथ मनाए जा रहे हैं। पहली माघ पूर्णिमा और दूसरी रविदास जयंती। दोनों पर्व एक-दूसरे पूरक माने जाते हैं। समाज सुधारक संत रविदास के दिखाए रास्ते पर चलने का संकल्प लोग लेते हैं। माघ पूर्णिमा को ध्यान, स्नान, दान के लिए खास मानते हैं। आज के ही दिन अखंड भारत के महान संत रविदास का अवतरण भी हुआ था। वह स्वामी रामानंद के शिष्य और कबीरदास के गुरु भाई हैं। संत शिरोमणि रविदास भक्तिकाल के अग्रिम पंक्ति के कवि हैं। उन्हें महानतम मानुष की उपाधि भी प्राप्त थी। उनके परिवर्तनकारी उपदेशों ने समाज का भरपूर मार्गदर्शन किया। संत रविदास ने भगवान की भक्ति में समर्पित होने के साथ अपने सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन किया। वह बिना भेदभाव किए आपसी सद्भाव पर जोर देते रहे।



संत रविदास का एक प्रचलित दोहा 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' आज भी प्रसिद्ध है, जिसका भावार्थ होता है शुद्ध मन और निष्ठा के साथ किए काम का अच्छा पुण्य-परिणाम मिलना। संत रविदास का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था। वह जूते बनाने में बहुत माहिर थे। उन्होंने कभी जाति-धर्म में अंतर नहीं किया। जो भी संत या फकीर उनके द्वार पर आते थे, वह बिना पैसे लिए उन्हें अपने हाथों से निर्मित जूते भेंट करना नहीं भूलते थे। वह प्रत्येक काम पूरे मन और लगन से किया करते थे। फिर चाहे वह जूते बनाना हो या ईश्वर की साधना करना। संत रविदास का जैसे-जैसे बड़े हुए, उन्होंने अपना अधिकांश समय भगवान राम और भगवान कृष्ण की पूजा में शुरू कर दिया। धार्मिक परंपराओं में उनकी लगनदेखकर लोग उन्हें भगवान की भांति पूजना भी शुरू कर दिया था। वह लोगों की बीमारी चुटकियों में दूर कर देते थे। महापुरुषों के संदेश और उपदेश घोर कलयुग में भी हम सभी के लिए संजीवनी जैसे हैं। संत रविवाद जैसे उपदेशकों की कमी समाज को खलती हैं। इस रिक्तता की वजह से ही सामाजिक सौहार्द का ताना-बाना चरमराया हुआ है। समाज को सही-गलत का भाव बताने वाला और प्रेरक उपदेश देने वाला अब कोई नहीं रहा।



रविदास का जन्म विक्रम संवत 1376 में माघ मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। इनके पिता का नाम संतोख दास और माता का कर्मा देवी था। इनकी धर्मपत्नी थी लोना दास और पुत्र का नाम श्रीविजयदास। लेकिन इनका मन गृहस्ती में नहीं रमता था। वह समाज सुधार की अलख जगाते थे। इनके पिता इन्हें घर के काम में लगाते थे, तो ये कहते थे कि मेरा सिर्फ यही घर नहीं है, पूरा जग मेरा परिवार है। घरवालों को कभी उनकी बातें अजीब सी लगती थीं। बाल्यकाल में जब उनके पिता एक संत के पास ले गए, तो उन्होंने देखकर ही बता दिया था, ये साधारण बालक नहीं है। इससे संत रविदास के पिता को आभास हुआ कि उनका बेटा वास्तव में कुछ और ही है। पिता ने उसी समय संकल्प ले लिया कि उनका बेटा युग सुधार के लिए ही जन्मा है।



संत रविदास के जन्म को लेकर भी कई भ्रांतियां तर्क हैं। धार्मिक मान्यताएं हैं कि माघ पूर्णिमा को रविदास का जन्म हुआ। उस दिन रविवार था, जिसके कारण उनका नाम रविदास रखा गया। इन्हें रैदास, रूहिदास और रोहिदास जैसे नामों से भी जाना जाता था। इनके संत बनने की भी अद्भुत कहानियां हैं। संत रविदास का पूरा जीवनकाल 15वीं से 16वीं शताब्दी के बीच (1450 से 1520 तक) के मध्य माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि बचपन से ही उनके पास अलौकिक शक्तियां मौजूद थीं। कुछ घटनाएं तो यह सिद्ध भी करती हैं कि वास्तव में वह कोई अवतरित भगवान ही थे। वो मात्र 11 वर्ष के थे तब अपने दोस्त को नया जीवन दिया था। पानी पर पत्थर को तैराना, कुष्ठ रोगियों को ठीक करने समेत उनके तमाम चमत्कारी किस्से लोगों को सोचने पर मजबूर करते थे। उन चमत्कारों को देखकर ही लोगों ने उन्हें भगवान का दूत मानना आरंभ कर दिया था। संत रविदास से संबंधित कई कहानी-किस्से हम बचपन से अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं। हमें उनके उपदेशों और प्रेरक बातों को अनुसरण करना चाहिए।



(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)