भुवनेश्वर : केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बुधवार को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी का आह्वान किया कि वह पड़ोसी राज्य ओडिशा के साथ द्विपक्षीय वार्ता के लिए तत्काल हस्तक्षेप करें ताकि दोनों राज्यों के सीमा विवाद का सर्वमान्य समाधान हो सके।

रेड्डी को लिखे पत्र में केंद्रीय शिक्षामंत्री प्रधान ने कुछ सुझाव भी दिए हैं जिनमें इस संदर्भ में दर्ज मामलों को वापस लेना, सशस्त्र पुलिस बलों की इलाकों से वापसी, विवादित क्षेत्र में गैर जरूरी ढांचों के निर्माण को स्थगित करना और वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाना शामिल है।

भाजपा नेता ने कहा कि कोरापुट जिले के पोट्टांगी ब्लॉक के कोटिया ग्राम पंचायत के 20 गांवों में शुरू हुई लड़ाई अब गजपति जिले के अन्य गांवो में भी फैल गई है। उन्होंने कहा कि गत कुछ महीनों में कोटिया में झड़प की कई घटनाएं हुई हैं। आंध्र प्रदेश ने हाल में कोटिया में हुए पंचायत चुनाव के नतीजों की घोषणा की है।

उल्लेखनीय है कि ओडिशा सरकार ने दोनों राज्यों के दावे वाले क्षेत्रों में आंध्र प्रदेश प्रशासन द्वारा कई योजनाएं शुरू करने की कोशिश के बाद पिछले महीने कोटिया में सशस्त्र पुलिस बलों की तैनाती की थी और अवरोधक लगाए थे।

प्रधान ने पत्र में कहा, ‘‘ ओडिशा और आंध्र प्रदेश के लोगों के हित में, मैं अनुकूल और आपसी सहमति से मामले के समाधान के लिए आपका (रेड्डी) तत्काल व्यक्तिगत हस्तक्षेप चाहता हूं।’’

उन्होंने इस मामले को गंभीर चिंता का विषय बताते हुए कहा कि इससे विकास के लिए उठाए जा रहे कदमों के पटरी से उतरने की आशंका है जो दोनों राज्यों की सीमा पर अवस्थित गांवों में वामपंथी उग्रवाद के खतरे को कम करने में योगदान देते हैं।

राज्यसभा सदस्य ने मौजूदा अस्थिर स्थिति को ‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण’ करार देते हुए कहा कि इससे सुरक्षा को खतरा है जो शांति के प्रयासों को शून्य कर सकता है जो कई वर्षों की मेहनत के बाद इन क्षेत्रों में आई है।

प्रधान ने कहा, ‘‘इस तरह की स्थिति से केवल अविश्वास ही पैदा होगा और उन ताकतों को मदद मिलेगी जो दोनों राज्यों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हित के खिलाफ काम करती हैं।’’

गौरतलब है कि कोटिया पंचायत के 28 में से 21 गांवों पर मालिकाना हक के लिए वर्ष 1968 में पहली बार मामला उच्चतम न्यायालय पंहुचा था। वर्ष 2006 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अंतर राज्य सीमा उसके न्यायाधिकार क्षेत्र में नहीं आता और केवल संसद ही उसका समाधान कर सकती है।