भारत और चीन  के बीच पूर्वी लद्दाख में  इस साल मई से जारी हुआ विवाद फिलहाल खत्म होता नहीं दिख रहा है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर डिसएंगेजमेंट यानी सेनाओं को पीछे करने की कोशिश को लेकर हुई कमाडंर स्तरीय बैठक में अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया है. लद्दाख में पारा माइनस डिग्री में जाने के बाद हालात और बिगड़ गए हैं.

भारत और चीन के बीच लंबे वक्त से चला आ रहा सीमा विवाद इस साल मई से एक बार फिर गर्माने लगा जब पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आई गईं. अब तक यहां दो बार हिंसक झड़प भी हो चुकी है और दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक बैठकें कर समाधान निकालने की कोशिश की जा रही है. वहीं, चीन से सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में भी खतरा बना हुआ है जहां ड्रैगन के तेवर आक्रामक बने हैं.

हालांकि, भारत सरकार इस बात को लेकर आशान्वित है कि लद्दाख में बर्फीली सर्दियों की तबाही के बीच जारी वार्ता से कम से कम पैंगोंग झील के आसपास की स्थिति में कुछ सुधार होंगे. चीनी सेना यहां से सैनिकों को पीछे वापस जाने को कहेगी.

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में चीन ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) में सड़क, रेलवे और फाइबर-ऑप्टिक लाइनों जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण में करीब 9.9 बिलियन डॉलर का निवेश किया. इसके अलावा निवेशकों को आकर्षित करने के लिए 26 नए शहरों के निर्माण पर 1.3 बिलियन डॉलर खर्च किए जा रहे हैं. भारी निवेश होने पर वहां नौकरियों के अवसर भी बढ़े हैं.

फ्रांस के जाने माने लेखक और इतिहासकार क्लाउड अरपी ने उल्लेख किया है कि ल्हासा से बाहर रेल विस्तार का एक नेटवर्क तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की राजधानी को यतांग से जोड़ेगा. ये भूटान द्वारा दावा किए गए कुछ क्षेत्रों को भी कवर करेगा. जाहिर है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी आगे जाकर भूटान के इस क्षेत्र पर भी अपना दावा करेगी. इसके बाद भूटान की चुम्बी घाटी में चीन के पास अपनी सेना तैनात करने की क्षमता भी हो जाएगी. भारत इसके पहले इस मामले पर विरोध जता चुका है.