धनबाद, 04 मार्च (हि.स.)। धनबाद को भारत की कोयला राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। धनबाद अपने अनोखे काले सोने के रंग के लिए जाना जाता है। देश में पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था, लेकिन तब धनबाद लोकसभा सीट अस्तित्व में नहीं थी। धनबाद लोकसभा सीट का गठन 1957 में हुआ था। धनबाद की राजनीति काफी हद तक दो राजनीतिक दलों तक ही सीमित रही है।

धनबाद में पहली बार 1957 में हुए चुनाव

1957 में धनबाद सीट पर हुए पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार प्रभात चंद्र बोस ने इस सीट से जीत हासिल की थी। उन्हें कुल 48.5 फीसदी वोट मिले थे, जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को 20.4 फीसदी वोट, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 19.4 फीसदी जबकि झारखंड पार्टी को 12.2 फीसदी वोट मिले थे। 1962 के चुनाव की बात करें तो 1962 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने यहां जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार इस सीट पर कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदल दिया और पीआर चक्रवर्ती को टिकट दिया था, जिन्होंने 36.3 प्रतिशत वोटों के साथ जीत हासिल की थी।

1967 के चुनाव में जन क्रांति दल ने यहां से चुनाव जीता था और उसके उम्मीदवार एलआर लक्ष्मी कुल 34.1 फीसदी वोट पाकर धनबाद के सांसद बने थे, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 24.5 फीसदी वोट मिले थे।हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी यहां से अपना उम्मीदवार बदला था और आनंद प्रकाश शर्मा को यहां से मैदान में उतारा गया था। 1971 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने फिर से इस सीट पर जीत हासिल की थी। रामनारायण शर्मा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार थे और उन्होंने 45 प्रतिशत वोट पाकर इस सीट पर कब्जा जमाया था, जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के विनोद बिहारी महतो को 15.3 फीसदी वोट मिले थे।

1977 के चुनाव में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार एके रॉय ने जीत हासिल की, उन्हें 67 फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के राम नारायण शर्मा को 20.8 फीसदी वोट मिले थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को 5.8 फीसदी वोट मिले थे। 1980 के चुनाव में एक बार फिर यहां से निर्दलीय उम्मीदवार एके रॉय ने जीत हासिल की थी। इस बार उन्हें 35.6 फीसदी वोट मिले। हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बार फिर यहां अपना उम्मीदवार बदला और योगेश्वर प्रसाद योगेश को अपना उम्मीदवार बनाया था। उन्हें 29.8 फीसदी वोट मिले थे। जनता पार्टी को 19.3 फीसदी वोट मिले थे। 1984 के चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट पर वापस जीत हासिल की। उसके उम्मीदवार शंकर दयाल सिंह ने इस सीट पर जीत हासिल की था। इस बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 40.5 फीसदी वोट मिले थे, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार एके रॉय को 28.5 वोट मिले थे। भाजपा को 14 फीसदी वोट मिले थे।

1989 के लोकसभा चुनाव में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से एके रॉय को उम्मीदवार बनाया गया और उन्होंने 38 फीसदी वोट पाकर जीत हासिल की थी। इस बार भाजपा पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी। इस बार समरेश सिंह को भाजपा ने टिकट दिया था, जिन्हें 35.9 फीसदी वोट मिले थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 18.3 फीसदी वोट मिले थे।

भाजपा ने पहली बार 1991 में जीत दर्ज की

1991 में हुए चुनाव में यहां से भारतीय जनता पार्टी की रीता वर्मा ने जीत हासिल की थी। रीता वर्मा को 43.4 फीसदी वोट मिले थे, जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एके रॉय को 29 फीसदी वोट मिले थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा ( झामुमो) को 10.3 फीसदी वोट मिले थे। 1996 के चुनाव में भी भाजपा की रीता वर्मा ने यहां से जीत हासिल की थी जबकि समरेश सिंह ने जनता दल से चुनाव लड़ा था। उन्हें 30.2 फीसदी वोट मिले थे। 1998 के चुनाव में भाजपा ने फिर से इस सीट पर जीत हासिल की थी। भाजपा की रीता वर्मा को कुल 49.9 फीसदी वोट मिले थे।

1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की रीता वर्मा ने फिर से जीत हासिल की थी। उन्हें 47.5 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि झारखंड विभाजन के बाद 2004 में हुए पहले चुनाव में लगातार जीतती आ रही भाजपा को अपनी सीट गंवानी पड़ी और यहां से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर चन्द्रशेखर दुबे ने जीत हासिल की। कांग्रेस को 37.8 फीसदी वोट मिले थे, जबकि भारतीय जनता पार्टी की रीता वर्मा को 25.5 फीसदी वोट मिले थे। 2009 के चुनाव में भाजपा ने अपना उम्मीदवार बदला और यहां से पशुपतिनाथ सिंह को टिकट दिया। भाजपा को कुल 32 प्रतिशत वोट मिले और पशुपतिनाथ विजयी हुए, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चन्द्रशेखर दुबे को 24.9 फीसदी वोट मिले थे, 16.3 फीसदी वोट पाकर बहुजन समाज पार्टी यहां मजबूती से उभरी थी।

भाजपा ने 2019 में लगाई जीत की हैट्रिक

2014 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल की। भाजपा के पशुपतिनाथ सिंह ने फिर से सीट जीत ली। भाजपा को कुल 47.5 फीसदी वोट मिले, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अजय कुमार दुबे को 21.9 प्रतिशत वोट मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में पशुपतिनाथ सिंह यहां से तीसरी बार चुनाव जीते और उन्हें कुल 66 फीसदी वोट मिले, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कीर्ति आजाद को 27.2 फीसदी वोट मिले। कीर्ति आजाद भाजपा में थे, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी पार्टी में शामिल कर उन्हें अपने टिकट पर धनबाद से मैदान में उतारा था।

हिन्दुस्थान समाचार/वंदना/वीरेन्द्र