शिमला : हिमाचल प्रदेश को अब तक का पहला उपमुख्यमंत्री रविवार को मिला और मुकेश अग्निहोत्री ने इस पद की शपथ ली।

निवर्तमान विधानसभा में विपक्ष के नेता अग्निहोत्री का समायोजन करने के लिए कांग्रेस ने यह कदम उठाया है। वह मुख्यमंत्री पद के लिए प्रबल दावेदारों में से एक थे।

इस सप्ताह सामने आये विधानसभा चुनाव के परिणाम के आधार पर कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद कई गुट इस शीर्ष पद के लिए दावा कर रहे थे।

पार्टी ने आहत अहम को तुष्ट करने तथा नयी गठित सरकार पर खतरा रोकने के वास्ते गुटबाजी रोकने के लिए त्वरित कदम उठाया। हालांकि ऐसा मतभेद पार्टी में कोई नयी बात नहीं है।1967 में बागियों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. वाई एस परमार की अगुवाई वाली सरकार को गिराने और विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन की धमकी दी थी।

तब विधानसभा में काफी गहमागहमी हुई थी और तीन वरिष्ठ कांग्रेस विधायकों ठाकुर करम सिंह, पंडित पदम देव और विद्या धर को विपक्ष के साथ जाने से रोकने के लिए उनकी मुख्यमंत्री के साथ लंबे समय तक एकांत में मंत्रणा हुई थी । उसके बाद जब वे सदन में लौटे तो उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव का विरोध किया।

सौदेबाजी के तहत करम सिंह और पंडित पदम देव को कैबिनेट मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था और विद्याधर उपमंत्री बनाये गये थे लेकिन तब भी किसी को उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया गया था।

फिर 1993 में जब कांग्रेस को 68 में से 56 सीट मिली तब पार्टी वीरभद्र सिंह और सुखराम गुट में बंट गयी थी तथा आखिरकार वीरभद्र सिंह को नेता चुना गया था एवं सुखराम के बेटे अनिल शर्मा को मंत्रिमंडल में जगह दी गयी थीं। लेकिन उस वक्त भी किसी को उपमुख्यमंत्री नहीं नियुक्त किया गया था।

वर्तमान सरकार में मुख्यमंत्री एवं उपमुख्यमंत्री दोनों ही हमीरपुर संसदीय क्षेत्र हमीरपुर से आते हैं और इस संसदीय सीट के प्रतिनिधि भाजपा नेता अनुराग ठाकुर हैं। मंत्रिमंडल का बाद में विस्तार किया जाएगा।

पार्टी ने जातीय समीकरणों को भी ध्यान में रखा है। सुक्खू राजपूत हैं जबकि अग्निहोत्री ब्राह्मण हैं।