लंदन : ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के कोविड-19 रोधी टीके के कारण खून में थक्का जमने के मामले वैसे तो विरले ही होते हैं लेकिन यह बेहद खतरनाक और घातक हो सकते हैं। इस संबंध में पहली बार किए गए अध्ययन में शीर्ष वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय अस्पताल एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट की डॉ सूई पवोर्ड के नेतृत्व में अध्ययन टीम ने टीकाकरण के बाद के प्रतिरक्षण संबंधी मामलों का विश्लेषण किया। ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित अध्ययन में टीकाकरण के बाद इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया थ्रोम्बोसिस (वीआईटीटी) के पहले 220 मामलों का अध्ययन किया गया और पता चला कि वीआईटीटी के मामले में मृत्यु दर 22 प्रतिशत है।

प्लेटलेट कम रहने और खून के थक्के भी ज्यादा बनने पर मौत की आशंका बढ़ जाती है। वहीं, बेहद कम प्लेटलेट और खून के थक्के बनने के बाद रक्तस्राव से यह आशंका 73 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। डॉ पवोर्ड ने कहा, ‘‘इस बात पर जोर देना जरूरी है कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका टीके के प्रति इस तरह की प्रतिक्रिया बहुत दुर्लभ है।’’

पवोर्ड ने कहा, ‘‘50 साल से कम उम्र की स्थिति में टीका ले चुके 50,000 लोगों में एक में इसके मामले आ सकते हैं। लेकिन हमारे अध्ययन में दिखा है कि वीआईटीटी विकसित होने पर यह खतरनाक होता है। युवाओं और स्वस्थ लोगों में इसकी आशंका बहुत कम है लेकिन मृत्यु दर बुहत अधिक है। विशेष रूप से कम प्लेटलेट और मस्तिष्क में खून का स्राव होने पर यह बहुत घातक होता है।’’

वीआईटीटी थ्रोम्बोटिक सिंड्रोम है जिसका जुड़ाव कोविड-19 रोधी टीकाकरण से हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के टीके का भारत में कोविशील्ड नाम से उत्पादन हो रहा है। रक्त रोग विज्ञान पर समिति ने कहा है कि पिछले तीन से चार हफ्तों से वीआईटीटी का कोई नया मामला नहीं आया है। इससे संकेत मिलता है कि 40 साल से कम उम्र के लोगों को एक वैकल्पिक टीका देने के संबंध में टीकाकरण पर ब्रिटेन की संयुक्त समिति (जेसीवीआई) के निर्णय ने खास भूमिका अदा की है। डॉ पवोर्ड ने कहा, ‘‘वीआईटीटी नया सिंड्रोम है और हम इसके प्रभावी उपचार के लिए अब भी काम कर रहे हैं। अध्ययन से कारगर इलाज में मदद मिलेगी।’’