चंडीगढ़/ नयी दिल्ली : पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और राज्य की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के बीच विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर विवाद शनिवार को और बढ़ गया, जब राज्यपाल ने मुख्यमंत्री भगवंत मान को उनके कर्तव्यों की याद दिलाने की कोशिश की तो वहीं दूसरी ओर ‘आप’ ने राज्यपाल से ‘लक्ष्मण रेखा’ न लांघने को कहा।

पुरोहित ने मान को उनके दायित्वों की ‘याद’ दिलाने की कोशिश करते हुए कहा कि उनके कानूनी सलाहकार इस विषय पर उन्हें समुचित ढंग से सही जानकारी नहीं दे रहे हैं। राज्यपाल ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री उनसे ‘‘बहुत ज्यादा नाराज’’ हैं।

‘आप’ ने राज्यपाल पुरोहित पर हमला तेज करते हुए आरोप लगाया कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इशारे पर काम कर रहे हैं।

‘आप’ के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने भी पुरोहित को अपनी सीमा का ध्यान रखने और ‘‘लक्ष्मण रेखा’’ पार नहीं करने को कहा।

केरल, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में हाल के दिनों में कई मुद्दों पर राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच खींचतान देखने को मिली है।

राजभवन एवं ‘आप’ सरकार के बीच शुक्रवार को तब विवाद बढ़ गया, जब राज्यपाल ने मंगलवार को विधानसभा के प्रस्तावित सत्र में किये जाने वाले विधायी कार्यों की सूची मांग ली। इस पर मान ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह तो ‘हद’ है।

पहले पुरोहित ने सरकार की विश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 22 सितंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की योजना विफल कर दी थी।

शनिवार को उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा, ‘‘आज के अखबारों में आपका बयान पढ़कर मुझे ऐसा लगा कि शायद आप मुझसे काफी हद तक नाराज हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि आपके कानूनी सलाहकार आपको समुचित ढंग से जानकारी नहीं दे रहे हैं। शायद मेरे बारे में आपकी राय संविधान के अनुच्छेदों 167 और 168 के प्रावधानों को पढ़ने के बाद बदल जाएगी, जिन्हें मैं आपके संदर्भ के लिए उद्धृत कर रहा हूं।’’

अनुच्छेद 167, राज्यपाल के प्रति मुख्यमंत्री के दायित्वों को परिभाषित करता है जबकि अनुच्छेद 168 में राज्य विधानमंडल की संरचना का विवरण है।

शुक्रवार को मान ने यह कहते हुए राज्यपाल की मांग को लेकर अपनी नाखुशी प्रकट की थी कि विधानमंडल के किसी सत्र से पहले उनकी सहमति औपचारिकता भर है।

मान ने ट्वीट किया था, ‘‘विधायिका के किसी सत्र से पूर्व राज्यपाल/ राष्ट्रपति की सहमति औपचारिकता है। 75 सालों में किसी भी राष्ट्रपति या राज्यपाल ने सत्र बुलाने से पहले विधायी कार्यों की सूची नहीं मांगी। कार्य मंत्रणा समिति एवं विधानसभा अध्यक्ष ही विधायी कार्य तय करते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगले राज्यपाल सभी भाषणों को उनके द्वारा अनुमोदित करने की मांग करेंगे। यह तो हद ही है।’’

‘आप’ नेता एवं राज्य के कैबिनेट मंत्री अमन अरोड़ा ने कहा कि पंजाब सरकार कोई टकराव नहीं चाहती है, लेकिन अगर कोई उन्हें अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करने से वंचित करने की कोशिश करता है तो यह सत्ताधारी दल को स्वीकार नहीं होगा।

अरोड़ा ने पुरोहित पर भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र के कहने पर पार्टी के ‘ऑपरेशन लोटस’ को सफल बनाने के लिए 22 सितंबर को होने वाले पहले के विशेष सत्र को रद्द करने का आरोप लगाया।

उन्होंने चंडीगढ़ में पत्रकारों को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि राज्यपाल भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 75 वर्ष में ऐसा कभी नहीं हुआ कि विधायी कार्य के बारे में विवरण मांगा गया हो।

अरोड़ा ने कहा, ‘‘कल एक शर्मनाक घटना हुई, जो पिछले 75 वर्ष में नहीं हुई है। राज्यपाल ने विधायी कार्य के बारे में जानकारी लेने के लिए पंजाब सरकार को एक नया पत्र जारी किया।’’

उन्होंने आरोप लगाया कि गैर-भाजपा सरकारों वाले राज्यों में राज्यपाल निवास ‘‘साजिश रचने’’ के स्थान बन गए हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली में, जहां ‘आप’ सत्ता में है, उपराज्यपाल विपक्ष की तरह काम कर रहे हैं।

अरोड़ा ने आरोप लगाया, ‘‘मुझे लगता है कि केंद्र ने यहां के राज्यपाल को विपक्ष की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी है, जिसके कारण हर दिन इस तरह के पत्र जारी किए जा रहे हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या राज्य सरकार राज्यपाल द्वारा मांगी गई जानकारी मुहैया कराएगी, अरोड़ा ने कहा कि इस संबंध में फैसला मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष द्वारा कानूनी परामर्श करने के बाद लिया जाएगा।

यह पूछे जाने पर कि राज्यपाल ने यदि सत्र आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया तो क्या कदम उठाया जायेगा, अरोड़ा ने कहा, ‘‘उन्हें ऐसा करने दें, हम उसके अनुसार योजना बनाएंगे।’’

‘आप’ के मुख्य प्रवक्ता भारद्वाज ने विधायी कार्य का विवरण मांगने के लिए राज्यपाल की आलोचना की।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘पंजाब के भाजपा द्वारा नियुक्त राज्यपाल इस तरह काम कर रहे हैं जैसे वह एक स्कूल के प्रधानाचार्य हैं और राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य उनके छात्र हैं।’’ उन्होंने राज्यपाल पर राज्य विधानसभा के काम में ‘‘हस्तक्षेप’’ करने का आरोप लगाया और उनकी कार्रवाई को ‘‘लोकतंत्र की गरिमा के खिलाफ’’ बताया।

भारद्वाज ने कहा, ‘‘हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। राज्यपाल को अपनी सीमा को समझना चाहिए और लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करना चाहिए।’’