फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। शिवरात्रि मनाने के पीछे पुराणों में अलग-अलग कथाओं का उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण में शिवरात्रि मनाने के पीछे एक कथा का उल्लेख किया गया है जिसमें अमृत प्राप्त करने के लिए जिस समय समुद्र मंथन किया गया, उस समय सर्वप्रथम हलाहल विष की प्राप्ति हुई। इस हलाहल विष की ज्वाला इतनी तीव्र थी कि वह सभी देव व दैत्यों को प्रभावित कर रही थी। इस विष के कारण संसार का विनाश हो सकता था व इस विष को धारण करने व सहन करने की क्षमता किसी में भी नहीं थी।

इस पर सभी देव व दैत्यों ने मिलकर भगवान शिव की शरण में गए और सृष्टि को इस विष से बचाने के लिए प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने सबके भले के लिए इस विष का पान किया। विषपान करने के पश्चात् भगवान शिव का शरीर जलन से तपने लगा। विष का प्रभाव इतना अधिक था कि भगवान शिव के कण्ठ नीले हो गए।

तपन से बचाने के लिए सभी  ने भगवान शिव पर जल डालना आरम्भ कर दिया एवं सभी देव-दैत्य दूध ग्रहण करने का निवेदन करने लगे। दूधपान करने से भगवान शिव के शरीर की तपन शांत होने लगी। तभी से भगवान शिव पर जल व दूध चढ़ाने की प्रथा प्रारम्भ हुई और वे नीलकण्ठ कहलाये।

 

ईशान संहिता में उल्लेख मिलता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्य के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के समीप होते हैं अतः वही समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है अर्थात् इस चतुर्दशी को शिव पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं, जीवन सुखमय होता है।

 

शिवरात्रि को चार प्रहर पूजा करने का विधान शास्त्रों में मिलता है और करना भी चाहिए। इस पूजा में शिवजी को पंचामृत से स्नान कराकर चंदन, पुष्प, अक्षत, वस्त्र आदि से श्रृंगार कर आरती करनी चाहिए व पंचाक्षर मंत्र का जप करना चाहिए व रुद्राभिषेक, रुद्राष्टाध्यायी तथा रुद्रीपीठ का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन महामृत्युंजय मंत्र शिवजी के समक्ष बोला जाए तो कई अनिष्टों का प्रभाव खत्म होता है व आसुरी शक्तियों का नाश होता है।

 

ज्योतिष उपायों के अनुसार जन्म पत्रिका में राहु की स्थिति अच्छी न हो तो महाशिवरात्रि का व्रत करके शिवजी के चारों प्रहर की पूजा कर राहु के दोषों को काफी कम किया जा सकता है। जिस किसी की कुण्डली में कालसर्प योग, पितृ दोष, गुरु-चांडाल योग, अंगारक योग आदि हो तो शिवजी की पूजा आराधना से दोष दूर होते हैं व लाभ मिलता है।

इस वर्ष महाशिवरात्रि 11 मार्च, 2021 को मनायी जाएगी।

 चार प्रहर पूजन समय निम्न है -

प्रथम प्रहर - सायं 06:29 मिनिट से रात्रि 09:32 मिनिट तक।

द्वितीय प्रहर - रात्रि 09:33 मिनिट से 12:36 मिनिट तक।

तृतीय प्रहर - मध्यरात्रि 12:37 मिनिट से 03:40 मिनिट  तक।

चतुर्थ प्रहर - मध्यरात्रि बाद 03:41 मिनिट से अगले दिन प्रातः 06:43 मिनिट तक।

निषिध काल मध्यरात्रि 12:12 मिनिट से 1:00 बजे तक।

दिन में पूजा करने के लिए शुभ चौघडिया का ध्यान रखकर पूजा करना लाभकारी होता है।

उपर्युक्त दिए गए समय में स्थान परिवर्तन की वजह से मुहूर्त्त समय आगे-पीछे हो सकता है।