नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि जनसंख्या को लेकर भारत में एक समग्र नीति बननी चाहिए जो सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को भी इससे छूट नहीं मिले।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में विजयादशमी उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने कहा, ‘‘जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।’’

उन्होंने कहा कि जनसंख्या असंतुलन भौगोलिक सीमाओं में बदलाव का कारण बनती है, ऐसे में नयी जनसंख्या नीति सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को छूट नहीं मिलनी चाहिए।

भागवत ने कहा कि अपने देश की जनसंख्या विशाल है, यह एक वास्तविकता है। उन्होंने कहा कि इस जनसंख्या के लिए उसी मात्रा में साधन आवश्यक होंगे और अगर जनसंख्या बढ़ती चली जाए तो यह भारी व असह्य बोझ बन जाएगी।

उन्होंने कहा कि जनसंख्या को एक निधि भी माना जाता है और उसके उचित प्रशिक्षण व अधिकतम उपयोग की बात की जाती है।

चीन की ‘एक परिवार, एक संतान’ नीति का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा, ‘‘ जहां हम जनसंख्या पर नियंत्रण का प्रयास कर रहे हैं, वहीं हमें देखना चाहिए कि चीन में क्या हो रहा है। उस देश ने एक परिवार, एक संतान नीति अपनाया और अब वह बूढ़ा हो रहा है।’’

उन्होंने भारत के संदर्भ में कहा कि आज यह सबसे युवा देश है और 50 वर्षों के पश्चात आज के तरुण प्रौढ़ बनेंगे।

भागवत ने कहा कि संतान संख्या का विषय माताओं के स्वास्थ्य, आर्थिक क्षमता, शिक्षा, इच्छा के अलावा प्रत्येक परिवार की आवश्यकता से भी जुड़ा होता है और यह जनसंख्या व पर्यावरण को भी प्रभावित करता है।

सरसंघचालक ने कहा, ‘‘ जनसंख्या नीति ‌इतनी सारी बातों का समग्र व एकात्म विचार करके बने, सभी पर समान रूप से लागू हो, लोक प्रबोधन द्वारा इस के पूर्ण पालन की मानसिकता बनानी होगी। तभी जनसंख्या नियंत्रण के नियम परिणाम ला सकेंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जहां जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूकता और उस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में हम निरंतर अग्रसर हैं, वहीं कुछ प्रश्न और भी विचार के लिए खड़े हो रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि सन 2000 में भारत सरकार ने समग्रता से विचार कर एक जनसंख्या नीति का निर्धारण किया था जिसमें एक महत्वपूर्ण लक्ष्य प्रजनन दर 2.1 को प्राप्त करना था।

भागवत ने कहा कि 2022 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएच) की रिपोर्ट आई है जिसमें यह बात सामने आई है कि जागरूकता और सकारात्मक सहभागिता तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों के सतत समन्वित प्रयासों के परिणामस्वरूप प्रजनन दर 2.1- 2.0 के बीच आ गई है।

उन्होंने कहा कि समाज विज्ञानी और मनोवैज्ञानिकों के मत के अनुसार बहुत छोटे परिवारों के कारण बालक-बालिकाओं के स्वस्थ समग्र विकास, परिवारों में असुरक्षा का भाव, सामाजिक तनाव, एकाकी जीवन आदि चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है और हमारे परिवार व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है।

भागवत ने कहा कि वहीं एक दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न जनसांख्यिकी असंतुलन का भी है।

सरसंघचालक ने कहा कि 75 वर्ष पूर्व भारत में इसका अनुभव किया गया और 21वीं सदी में जो तीन नये स्वतंत्र देश - ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवा अस्तित्व में आए और वे इंडोनेशिया, सूडान और सर्बिया के एक भूभाग में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ने का ही परिणाम हैं।

उन्होंने कहा कि जब-जब किसी देश में जनसांख्यिकी असंतुलन होता है, तब- तब उस देश की भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन आता है।

भागवत ने कहा, ‘जन्मदर में असमानता के साथ साथ लोभ, लालच, जबरदस्ती से चलने वाला मतांतरण व देश में हुई घुसपैठ भी बड़े कारण हैं... इन सबका विचार करना पड़ेगा।’’

उन्होंने कहा कि सुरक्षा के क्षेत्र में हम अधिकाधिक स्वावलंबी होते जा रहे हैं। शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने वाली नीति बननी चाहिए, यह अत्यंत उचित विचार है और नयी शिक्षा नीति के तहत उस ओर शासन/ प्रशासन पर्याप्त ध्यान भी दे रहा है।

भागवत ने कहा, ‘‘ नयी शिक्षा नीति के कारण छात्र एक अच्छा मनुष्य बने, उसमें देशभक्ति की भावना जगे, वह सुसंस्कृत नागरिक बने यह सभी चाहते हैं। समाज को इसका सक्रियता से समर्थन करने की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा कि कोई भी कार्य कम महत्वपूर्ण या कम प्रतिष्ठित नहीं होता है, चाहे वह हाथ से किया जाने वाला हो, वित्तीय या बौद्धिक श्रम हो। हम सबको यह बात समझनी होगी और उसी के अनुरूप आचरण करना होगा।

भागवत ने कहा कि सभी जिलों में विकेंद्रीकृत रोजगार प्रशिक्षण एवं गांवों के विकास के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, यात्रा सुगमता के क्षेत्र में निवेश महत्वपूर्ण हैं।

आरएसएस के विजयादशमी उत्सव में इस वर्ष प्रसिद्ध पर्वतारोही संतोष यादव मुख्य अतिथि रहीं।

संघ प्रमुख ने कहा कि संघ के कार्यक्रमों में अतिथि के नाते महिलाओं की उपस्थिति की परम्परा पुरानी है।

भागवत ने कहा कि कुछ बाधाएं सनातन धर्म के समक्ष रूकावट बन रही हैं जो भारत की एकता एवं प्रगति के प्रति शत्रुता रखने वाली ताकतों द्वारा सृजित की गई हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी ताकतें गलत बातें एवं धारणाएं फैलाती हैं, अराजकता को बढ़ावा देती हैं, आपराधिक कार्यों में संलग्न होती हैं, आतंक तथा संघर्ष एवं सामाजिक अशांति को बढ़ावा देती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ केवल समाज के मजबूत एवं सक्रिय सहयोग से ही हमारी समग्र सुरक्षा एवं एकता सुनिश्चित की जा सकती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ शासन व प्रशासन के इन शक्तियों के नियंत्रण व निर्मूलन के प्रयासों में हमें सहायक बनना चाहिए। समाज का सबल व सफल सहयोग ही देश की सुरक्षा व एकात्मता को पूर्णत: निश्चित कर सकता है।’’

उन्होंने कहा कि संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हो गया, परन्तु सामाजिक समता को लाये बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नहीं आयेगा, ऐसी चेतावनी बाबा साहब आंबेडकर ने सभी को दी थी।

उन्होंने कहा, ‘‘ हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारे मित्रों में सभी जातियों एवं आर्थिक समूहों के लोग हों ताकि समाज में और समानता लाई जा सके।’’

सरसंघचालक ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियां और दुश्मनी बनाने का काम स्वतन्त्र भारत में भी चल रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे तत्वों के बहकावे में न फंसते हुए, उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयतापूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए।