अमेरिका और डॉलर का भविष्य

पं. सतीश शर्मा

अमेरिका की प्रभाव राशि मिथुन मानी गई है। मिस्र के प्रसिद्ध विद्वान टॉलेमी और भारत के वराहमिहिर की स्थापना को ध्यान में रखते हुए जब अध्ययन किया जाता है तो मिथुन राशि अनुभव में भी सही नजर आती है। अमेरिका के बारे में पहले जो घोषणाएँ हुई वह 4 जुलाई, 1776 को फिलाडेल्फिया में हुई जो कि अलबामा राज्य में है और वह जन्म पत्रिका मिथुन लग्न की ही बनती है। यद्यपि हमने अन्य जन्म पत्रिकाओं पर भी विचार किया है परन्तु इस लेख में हम मिथुन लग्न की जन्म पत्रिका के आधार पर ही विवेचन करेंगे। यद्यपि अन्य लग्नों से भी भविष्यवाणी की जा सकती है।

 

ऋषि पाराशर के अनुसार यदि लग्न, दूसरा भाव व एकादश भाव में परस्पर सम्बन्ध हो जाये तो महाधनी योग बनता है। अमेरिका की कुण्डली में एकादश भाव के स्वामी लग्न में हैं, लग्न के स्वामी दूसरे भाव में स्थित है और दूसरे भाव के स्वामी चन्द्रमा आठवें भाव में बैठकर दूसरे भाव को देख रहे हैं। यह महाधनी होने का योग है, उस पर चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र में है जिसे महान धनप्रदायक माना गया है। शनि भाग्य के स्वामी होकर कन्या राशि में हैं जो कि अथाह भू-सम्पत्ति का संकेत है परन्तु अमेरिका के जीवन काल में कभी ना कभी विघटन का भी संकेत है। चंूकि चतुर्थ भाव के शनि छठे भाव को देख रहे हैं, इसलिए इनकी कुण्डली में शत्रुहंता योग बना हुआ है, क्योंकि छठे भाव में स्थित वृश्चिक राशि को उसके शत्रु शनि और राहु देख रहे हैं, इसलिए अमेरिका का वर्चस्व बना रहता है। वह दुनिया भर में अपना दखल रखता है और उसकी जासूसी संस्थाएँ और सेनाएँ संसार के हर द्वीप और महासागर पर नियंत्रण करने की इच्छाएँ करती हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका का वर्चस्व बढ़ा, क्योंकि दुनिया के सारे देश युद्ध की विविषिका से पीड़ित थे और उस समय शनि की महादशा चल रही थी। बाद के वर्षों में 1953 से 1970 तक बुध की महादशा में डॉलर अति बलवान हो गया और महाधनी योग बनाने वाले बुध की महादशा सक्रिय रही । आज हम सब जानते हैं कि किसी भी व्यक्ति की जन्म-पत्रिका में बारहवें भाव से यदि बुध का सम्बन्ध हो जाये तो वह व्यक्ति किसी न किसी रूप में अमेरिका से सम्बन्ध जरूर रखता है।

वर्तमान में अमेरिका राहु महादशा के अन्तर्गत चल रहा है। अमेरिका के जन्म के कुछ वर्ष बाद भी अमेरिका राहु की महादशा झेल रहा था और उसको पुनर्गठन में बहुत समस्याएँ आईं थी। अमेरिका की क्रांति 1786 तक चली। उस क्रांति तक राहु की दशा 6 साल तक भोगनी पड़ी थी। दूसरे भाव के राहु शत्रु राशि में स्थित होने के कारण तथा पुष्य नक्षत्र में होने के कारण सामाजिक विकृतियों के दोषी होते हैं। पिछले कुछ समय से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और वर्तमान राष्ट्रपति के बीच वर्चस्व का जो संघर्ष था अभी समाप्त नहीं हुआ है। चंूकि राहु धन योग कारक बुध ग्रह के साथ बैठे हैं इसलिए डॉलर अभी भी मजबूत है परन्तु जब तक राहु की महादशा रहेगी, तब तक डॉलर को कमजोर करने की शक्तियाँ काम करती रहेंगी। जैसे कि अमेरिका की जनता को उसके जन्मकाल के बाद भी राहु महादशा में अनन्त कष्ट झेलने पड़े थे, इसी तरह से अमेरिका अब राहु महादशा के अन्तर्र्गत मँहगाई, कोरोनाजन्य परिस्थितियाँ, बड़ी संख्या में मृत्यु, अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में कई जगह अपमानजनक परिस्थितियाँ तथा डॉलर को सबसे बड़ी चुनौतियाँ झेलनी पड़ रही हैं।

रूस का रूबल, चीन का युआन, भारत का रुपया -

यूक्रेन से युद्ध में अमेरिका ने रूस का डॉलर में व्यापार प्रतिबन्धित कर दिया। दुुनिया में कोई भी लेन-देन अगर डॉलर में होता है तो अमेरिका डॉलर की गारंटी देता है तथा यह लेन-देन उसी बैंक से हो सकता है जो डॉलर अकाउंट रखता हो। इस गारंटी के कारण हर डॉलर पर कमीशन मिलता है और अमेरिका बैंक मालामाल हुए जाते हैं। यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की सोच यह थी कि रूस का डॉलर में लेन-देन बंद हो जाएगा, उसका जमा डॉलर खर्च हो जाएगा और बाद में वह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नहीं कर सकेगा। बस इसी बात ने रूस को मौका दे दिया और उसने यूरोपीय देशों पर शर्त लगा दी कि तेल और गैस के मामले में रूस यूरोप को तभी सप्लाई करेगा जब वे भुगतान रूस की मुद्रा रूबल में करें। यह बात अमेरिका की कल्पनाओं में भी नहीं थी। रूस जीत में रहा क्योंकि पूरा यूरोप रूस के तेल व गैस पर निर्भर है। ठण्डे मुल्कों में मकान व भवन गर्म रखना अतिआवश्यक है वरना जीना दूभर हो जाएगा।

इससे सबक लेते हुए चीन ने भी कई देशों से पारस्परिक समझौते के आधार पर अपनी मुद्रा युआन में ही व्यापार करना शुरु कर दिया। इधर भारत ने भी एक तरफ तो विदेशी मुद्रा का भण्डारण प्रारम्भ कर दिया दूसरी तरफ कई देशों के साथ रुपे में व्यापार आरम्भ कर दिया और अपनी मुद्रा को स्वीकार करने के लिए सहमत कर लिया। रुपे को अब कई देशों से मंजूरी मिल गयी है तथा डेबिट कार्ड तथा के्रेडिट कार्ड में रुपे काम में लाया जाने लगा है।

अगले पांच वर्षों में सम्भावना है कि भारत, चीन और रूस 60 से 100 देशों से अपनी ही मुद्राओं में व्यापार करेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि इतने देशों से व्यापार करने में डॉलर की जरूरत नहीं रहेगी। भारत के रिजर्व बैंक ने भी भारतीय मुद्रा में विदेशी विनिमय में स्वीकृति दे दी है तथा कई भारतीय बैंक इस पर कार्य कर रहे हैं।

चूंकि डॉलर की ताकत अमेरिका की बुध महादशा में ही बढ़ी थी, इसलिए उस बुध के साथ बैठे राहु की दशा में डॉलर पर असर आना सम्भावित है। ऐसा माना जा सकता है कि धीरे-धीरे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में कई राष्ट्र डॉलर का उपयोग नहीं करेंगे तथा बार्टर के आधार पर कई देश आपस में ही अपनी मुद्रा से लेन-देन कर सकेंगे। अमेरिका के प्रतिद्वंद्वी देश ऐसा शुरु कर चुके हैं और मित्र देश यूरो मुद्रा का प्रारम्भ करके पहले ही ऐसा कर चुके हैं। इससे डॉलर की साख में कमी आएगी।

 

सबके दाता राम और रहीम

वीरेन्द्र नाथ भार्गव

भारतवर्ष की मिट्टी से एकरूपता का प्रमाण प्रस्तुत करने वाले एक ऐतिहासिक पात्र श्री अब्दुल रहीम खानखाना हुए हैं, जिन्हें रहीम के नाम से साहित्य में प्रसिद्धि मिली है। मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक रत्न (मंत्री) रहीम थे जो परम विद्वान, उदार, वीर और मुसलमान होने के उपरांत भी भगवान राम व कृष्ण के भक्त थे। वे तुर्कमानी मूल के होने के उपरांत भी भारत की मिट्टी में रच बस गए थे। दान की महत्ता और परम्परा भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रही है। समाज में दान की परम्परा को अपनाए जाने का अनुमोदन वैदिक काल की एक प्रसिद्ध गाथा में व्यक्त है। जब संसार में तीन वर्गों का यथा देव, दैत्य (असुर) और मानव (मनुष्य) जाति का प्रभाव था। एक बार उन तीनों के प्रतिनिधि साथ मिल कर प्रजापति के पास पहुंचे और उनसे पूछा ‘कि उन्हें क्या करना चाहिए?’ संयोगवश उस समय आकाश में बादल छाए हुए थे और बिजली चमक रही थी तथा द-द-द का नाद हो रहा था। प्रजापति ने उस द-द-द नाद की ओर इशारा करके ‘द’ शब्द की व्याख्या को देवों के लिए दमन (इन्दि्रय भोग का नियंत्रण) दैत्यों के लिए (क्रूर स्वभाव का त्याग) और मानव के लिए दान (कृपणता त्याग कर उदार व्यवहार अपनाना) का संदेश अपनाने को कहा। तब से दानवीर राजा बलि, ऋषि दधीचि और दानवीर कर्ण सहित असंख्य दानदाता पात्र हुए हैं। दान की महत्ता को ईश्वरीय विभूति मानते हुए एक भक्त कवि मलूकदास ने अपनी वाणी में कहा है-

अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम।

दास मलूका कह रहे सबके दाता राम।।

मुगल शासक अकबर के समकालीन मेवाड़ के महाराणा प्रताप के मंत्री व भामाशाह ने दानवीरता को अपनाकर अपना सारा धन महाराणा प्रताप को मातृभूमि के हित में न्यौछावर कर दिया था। रहीम को खानखाना की उपाधि से भी बहुत प्रसिद्धि मिलने का कारण, उनका परम उदार दान करने की प्रवृत्ति के अनुसार था। जब भी रहीम सार्वजनिक भोज अथवा निर्धन पात्रों को भोजन करवाते थे तब उनकी थाली में रुपये-अशर्फी भी रख देते थे। जिससे बिना किसी संकोच अथवा अनुग्रह के भोजनकर्ता उसको लेकर अपने आर्थिक कष्ट को दूर करता था। ऐसी व्यवस्था से रहीम को खानखाना अर्थात् जिसके खाने में खजाना हो, कहा जाने लगा कि ‘कमाएं रहीम और लुटाएं मियां रहीम।’ प्रायः रहीम जब स्वयं अपने हाथों से दान देते थे तब वे अपने नेत्र नीचे कर लेते थे। एक बार रहीम के परम मित्र गोस्वामी तुलसीदास ने एक निर्धन व्यक्ति को आर्थिक सहायता देने हेतु उसे रहीम के पास भेज दिया। रहीम ने तुलसीदास के पत्र को पढ़कर तुरंत उस व्यक्ति को नेत्र नीचे रखते हुए धन सौंपा। उस व्यक्ति ने पूछ ही लिया कि आपने नेत्र नीचे क्यों किए? तब रहीम ने कहा -

देनदार कोउ और है, देवत है दिन रैन।

लोग भरम मुझ पर करें, याते नीचे नैन।।

रहीम के पास विशाल जागीरें और उपाधियाँ थीं किन्तु उनमें इनके साथ दानशीलता और विनम्रतायुक्त विशाल हृदय था। स्वयं रहीम ने समाज को दानशीलता अपनाने हेतु प्रेरित किया कि -

जो गरीब को हित करे, ते रहीम बड़ लोग।

कहाँ सुदामा बापरे, कृष्ण मिताई जोग।।

रहीम ने अनेक अवसरों पर कवियों को उनके वजन के बराबर सोना तोलकर दिया। अकबर के शासनकाल में रहीम ने संस्कृत भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया और संस्कृत काव्य की भी रचना की। कहा जाता है कि एक बार मुसलमानी शासन से दुःखी एक पंडित संस्कृत भाषा में मुसलमानों को कोस रहा था। वह संस्कृत भाषा में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग कर रहा था जबकि व्याकरण के अनुसार पंचमी विभक्ति का प्रयोग किया जाना था। अचानक उधर से रहीम निकले। रहीम ने सुनकर पंडितजी के संस्कृत व्याकरण दोष को बतलाकर शुद्ध प्रयोग करने को कहा। मुसलमान रहीम को सामने देखकर पंडित बहुत घबराया और तुरंत अपनी फटी पगड़ी उतार कर रहीम के चरणों में रख दी। रहीम ने उसी समय उस पगड़ी को उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया। पंडित से उसके कष्ट की जानकारी लेकर उसे उदारतापूर्वक धन देकर वापस भेज दिया। अकबर के जीवनकाल में रहीम को बहुत प्रतिष्ठा मिली किन्तु अकबर के पश्चात् उसके पुत्र जहांगीर ने 70 वर्षीय रहीम पर राष्ट्रद्रोह लगाते हुए ‘नमक हराम’ घोषित करते हुए दरबार से निकाल दिया। रहीम दर-दर की ठोकर खाने लगे। लोग रहीम को पहचनाकर पुनः दान मांगने लगे तब रहीम ने उन्हें निराश करते हुए स्वीकार किया कि -

ए रहीम दर दर फिरहि, मांगि मधुकरी खाहि।

यारो यारी छोड़िए, वे रहीम अब नाहि।।

रहीम वहां से चलकर चित्रकूट आ गए। वहां रहीम को कोई पहचानता नहीं था। पेट भरने के लिए वे एक भड़भूजे के घर भाड़ झौंकने लगे और मजदूरी से काम चलाने लगे। संयोगवश एक बार रीवां के राजा चित्रकूट आए और रहीम की दुर्दशा का कारण पूछा। रहीम ने उत्तर दिया -

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस।

जा पर विपदा परत है, सो आवत यहि देस।।

रीवां नरेश ने मुक्त हृदय से रहीम की आर्थिक सहायता की, वहां से रहीम चलकर लाहौर पहुंचे। सन् 1627 में 72 वर्ष की आयु में रहीम का निधन हो गया। यह ज्ञात नहीं है कि जिस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास को चित्रकूट में अवधनरेश भगवान राम के दर्शन हुए थे, उसी प्रकार क्या रहीम को भी भगवान राम के दर्शन हुए थे? हिन्दू संस्कृति और हिन्दी साहित्य को रहीम का अमर योगदान है और भारतीय समाज को उनकी दानवीरता का अमर संदेश है।

 

चंद्रप्रिया रोहिणी

रोहिणी : रोहिणी राशि चक्र का  चौथा नक्षत्र है। इसका शाब्दिक अर्थ है लाल या बढ़ता हुआ। लाल रंग समृद्धि, संपन्नता एवं राज्योचित गुणों को प्रदर्शित करता है। रोहिणी नक्षत्र के चारों चरण वृषभ राशि में पड़ते हैं। स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं अतः इस नक्षत्र में शुक्र एवं चंद्रमा का सम्मिलित प्रभाव है। ये दोनों ग्रह सृजन एवं कल्पना शक्ति प्रदान करते हैं। इस नक्षत्र से जुड़े व्यक्तियों में सदैव कुछ नया करने की तीव्र इच्छा होती है। शुक्र एवं चंद्रमा दोनों शुभ ग्रह हैं, जो ईश्वर भक्ति एवं आध्यात्म की प्रेरणा देते हैं।

रोहिणी नक्षत्र का चिह्न बैलगाड़ी है जो धान्य आदि ले जाने के लिए प्रयुक्त  होती है। यह समृद्धि एवं ऐश्वर्य का प्रतीक है। आध्यात्म एवं सांसारिक भोग का उत्कृष्ट संगम यहाँ देखने को मिलता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रोहिणी चंद्रमा की प्रेयसी पत्नी हैं। रोहिणी नक्षत्र में आकर चंद्रमा अपने कर्त्तव्यों को भूलकर असामान्य व्यवहार करते हैं। रोहिणी नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति अपने कर्तव्यों के प्रति देर से सजग होते हैं। रोहिणी के सौंदर्य पर ब्रह्मा जी भी मुग्ध हो गए थे। यह कथाएं समझाती हैं कि रोहिणी के सौंदर्य में प्रबल आकर्षण शक्ति है।

रोहिणी के स्वामी देवता ब्रह्मा हैं, जो इस पृथ्वी के सृजनकर्ता हैं अतः सृजन का भाव इस नक्षत्र में अत्यंत बलवान है।

संक्षेप में

राशि                  -    वृषभ

स्वामी ग्रह    -    चंद्रमा

चिह्न                  -    बैलगाड़ी

गण                   -    मनुष्य

प्रधान                  -    मोक्ष

योनि                  -    सर्प

दिशा                  -    पूर्व

स्वामी देवता  -    ब्रह्मा 

नामाक्षर      -    ओ, वा, वी, वू

हस्त : इस नक्षत्र के चारों चरण कन्या राशि में आते हैं तथा इसके स्वामी ग्रह चन्द्रमा हैं। कन्या राशि के स्वामी बुध हैं अतः बुध और चन्द्रमा का सम्मिलित प्रभाव इस नक्षत्र में मिलता है। बुध की बुद्धि, सृजनशीलता तथा चन्द्रमा की कल्पना व सुन्दरता इस नक्षत्र में स्पष्टतः देखने को मिलती है। इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति के मस्तिष्क में नित्य प्रति नए और मौलिक विचारों की प्रधानता होती है। विपरीत परिस्थिति में भी धैर्य धारण किए रहते हैं। चन्द्रमा की भाँति शुद्धता और परिपक्वता भी इस नक्षत्र में मिलती है। इस नक्षत्र के देवता सवित्र हैं। सवित्र अर्थात् सूर्य भगवान जो कि मौलिक और नैसर्गिक सृजनात्मकता को मूर्त रूप में बदलने का कार्य करते हैं। साथ ही स्वयं से अधिक काम को महत्व देने का कार्य भी यह करते हैं। सूर्यदेव ज्योतिष में आत्मा के कारक हैं अतः सवित्र की प्रबल आत्मिक शक्ति का प्रभाव भी इस नक्षत्र में मिलता है।

इस नक्षत्र का प्रतीक चिह्न हाथ है। हाथ का कार्य है-कर्म करना। कर्म के साथ-साथ जब यही हाथ मित्रता के लिए बढ़ाया जाता है तो बल और निश्चय का सम्मिश्रण इसमें होता है। इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्तियों में लक्ष्य तक पहँुचने की अपार क्षमता होती है, चाहे उसके लिए कितना ही कठोर परिश्रम क्यों ना करना पड़े? जल्दबाजी इस नक्षत्र के व्यक्तियों में कम ही देखने को मिलती है परन्तु क्षमता से अधिक काम करने की प्रवृत्ति से कभी-कभी व्यक्ति असहज व्यवहार करने लग जाते हैं जिससे उन पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है। यह असहज व्यवहार कभी इनको सबकी निगाह में संदेहजनक बना देता है जो कि सामान्य रूप से घातक सिद्ध होने लगता है।

संक्षेप में

राशि                  -    कन्या

स्वामी ग्र्रह   -    चन्द्रमा

चिह्न                 -    हाथ (हथेली)

गण                   -    देव

दिशा                  -    दक्षिण

देवता                  -    सवित्र

नामाक्षर      -    पू, ष, ण, ठ

श्रवण : श्रवण नक्षत्र के चारों चरण मकर राशि में आते हैं। इस नक्षत्र के स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं अतः इस नक्षत्र पर शनि एवं चंद्रमा का सम्मिलित प्रभाव रहता है। श्रवण का अर्थ है - सुनना तथा इस नक्षत्र का चिह्न है-कान। इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति सुनने के महत्व को समझते हैं तथा गंभीर ज्ञानी होते हैं। सुनकर सीखने की लालसा भी सदैव बनी रहती है। इनका ध्यान संगीत, कला व अधिकाधिक ज्ञान पाने की ओर ही सदैव लगा रहता है।

चंद्रमा अभिव्यक्ति देते हैं व शनि एकाग्रता। चंद्रमा की अभिव्यक्ति, शनि की एकाग्रता से मिलकर ज्ञान का विस्तार वाक् चातुर्य के साथ कराती है। चंद्रमा की अभिव्यक्ति ही भावनाओं से जोड़ने वाली होती है अतः इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति सभी से मित्रवत व्यवहार रखते हैं।

मुहूर्त शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार इस नक्षत्र में आरंभ किया गया कार्य पूर्णता को अवश्य प्राप्त करता है। शनिदेव की समर्पण की भावना के कारण ये व्यक्ति लक्ष्य के प्रति समर्पित रहते हैं।

इस नक्षत्र के स्वामी देवता सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु हैं जिसका प्रभाव व्यक्ति पर पूर्णतः रहता है। ये व्यक्ति पूर्णतः सजग मस्तिष्क के तथा नियंत्रित स्वभाव वाले होते हैं। अधीरता का लेशमात्र भी इनके आचरण से लक्षित नहीं होता।

सरलता, सौम्यता व कठोरता का मिला-जुला रूप होते हैं परन्तु सुनने के गुण के कारण ही कई बार अर्थहीन एवं बुरी सलाहों में भी फँस जाते हैं, जो इनके व्यक्तित्व के प्रतिकूल आचरण हो जाता है।

संक्षेप में

राशि                  -    मकर

स्वामी ग्र्रह   -    चंद्रमा

चिह्न                  -    कान

गण                   -    देव

प्रधान                  -    अर्थ

दिशा                  -    उत्तर

नामाक्षर                 -    खी, खू, खे, खा

 

हस्तरेखा और व्यवसाय

एन. पी. थरेजा

हाथ व हथेली पर ऐसे बहुत से चिह्न होते हैं जिनसे पता लगता है कि उनके लिये कौन सा कार्य क्षेत्र उचित है, किन्तु यह ठीक नहीं बताया जा सकता कि व्यक्ति को कौन सा व्यवसाय चुनना चाहिये। ये चिह्न केवल व्यक्ति को अपनी जीविका चुनने में सहायक हो सकते हैं।

हम ये देखेंगे कि व्यक्ति को व्यापार करना चाहिये या नौकरी। व्यापार के लिए जो प्रमुख चिह्न हाथ व हथेली पर पाये जाते हैं, वे ये हैं-

हाथ का बीच वाला भाग अधिक उभरा हो। उंगलियों की तली से लेकर चंद्र पर्वत व शुक्र पर्वत के ऊपर तक। हथेली का ये भाग भौतिक जीवन व व्यापार जगत से संबंध रखता है। यदि ये उभरा है तो व्यक्ति व्यापार में सफलता प्राप्त करेगा। उंगलियों की तली से लेकर उंगलियों के ऊपरी भाग तक का हिस्सा बुद्धिमत्ता प्रकट करता है जबकि चंद्र पर्वत व शुक्र पर्वत के ऊपर वाले भाग से लेकर नीचे पौंचों तक का भोगात्मक प्रवृत्ति बताता है।

अंगूठे का पहला भाग शक्तिशाली हो।

उंगलियां हथेली से लम्बी हों।

उंगलियों का बीच वाला भाग लम्बा व मोटा हो क्योंकि ये चीजें व्यक्ति में धन कमाने की इच्छा उत्पन्न करती हैं।

बुध की उंगली लंबी हो पर बहुत अधिक नहीं।

बुध पर्वत जो कि व्यापारिक कार्यों का ही पर्वत है विशेष हो।

सूर्य पर्वत उभरा हो।

मस्तिष्क रेखा गहरी व स्पष्ट व अच्छी हो।

हाथ पर एक व्यापार की रेखा भी होती है, जिसे स्वास्थ्य रेखा या जिगर रेखा भी कहते हैं।

भाग्य रेखा स्पष्ट, गहरी व दोष रहित हो।

दोनों हथेलियों पर बुध पर्वत अच्छा हो।

गुरु पर्वत (महत्वाकांक्षा का पर्वत) व बुध पर्वत (व्यापार व चतुरता का पर्वत) अच्छे बने होने चाहिएं।

मस्तिष्क रेखा कांटे वाली हो अंत में व एक रेखा बुध पर्वत की ओर जाये।

पौंचे से निकलने वाली एक रेखा बुध पर्वत पर जाये।

भाग्य रेखा से निकलने वाली एक रेखा बुध पर्वत पर जाये।