गाइए गणपति जगबंदन

ज्योति शर्मा

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी के नाम से जानी जाती है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने से पूर्व गणेशजी को आमंत्रित किया जाता है व किसी भी प्रकार के अनुष्ठान व पूजा-अर्चना आदि में सर्वप्रथम गणेश पूजन अवश्य करते हैं, जिससे किसी भी प्रकार के कार्यों में विघ्न, बाधा न आये व गणेशजी की कृपा सदा बनी रहे। हम गणेशजी को विघ्नहर्ता व रिद्धि-सिद्धि के स्वामी, बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात प्रणवरूप मानते हैं। गणेश का अर्थ है गुणों का ईष अर्थात् गुणों के स्वामी। पद्म पुराण के अनुसार जब सृष्टि के आरम्भ यह प्रश्न उठा कि सर्वप्रथम पूजनीय किसे माना जाए? इस बात को लेकर समस्त देवता शिवजी के पास गए और उनसे इसके बारे में पूछा, शिवजी ने कहा कि कोई भी देवगण सम्पूर्ण पृथ्वी की तीन परिक्रमा सबसे पहले पूर्ण करके कैलाश पर्वत आ जाएगा, उसे ही सर्वप्रथम पूजनीय माना जाएगा। सभी देवता अपने-अपने वाहनों से सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। चूंकि गणेशजी का वाहन चूहा था, इस कारण वह सोच-विचार करने लगे। वे जानते थे कि राम नाम द्वारा कोई सी सिद्धि प्राप्त हो सकती है। श्रीराम के नाम में सारा विश्व ही समाया हुआ है। इसी राम नाम लिखी हुई पृथ्वी की उन्होंने अपने वाहन चूहे सहित तीन परिक्रमा पूर्ण की और अपने माता-पिता के चरणों में हाथ जोड़कर बैठ गए। राम नाम स्वयं एक महा मंत्र है। इसी कारण श्रीगणेशजी समस्त देवी-देवताओं के समूह में सर्वप्रथम पूजनीय हो गए। गणेश जी की महिमा के कारण सभी मङ्गल कार्यों में श्रीगणेशाय नम: बोलते और लिखते हैं।

गणेश जी को दूर्वा क्यों चढ़ाई जाती है? भगवान श्रीगणेश को दूर्वा अर्पण करने के पीछे शास्त्रों में कथा का उल्लेख मिलता है। अनलासूर नाम के राक्षस ने पृथ्वी पर हाहाकार मचा रखा था। उसके अत्याचारों से पृथ्वी के साथ-साथ स्वर्ग व पाताल लोक भी प्रभावित हो रहे थे। वह समस्त आराध्य भक्तों व ऋषि-मुनियों को जिंदा निगलने लगा। तब देवराज इन्द्र ने उससे युद्ध किया। युद्ध में इन्द्र को बार-बार पराजय का सामना करना पड़ा। तब सभी देवी-देवता चिंतित होकर भगवान शिव के पास गये और अनुरोध किया कि केवल गणेशजी ही अनलासूर को खत्म कर सकते हैं, क्योंकि उनका पेट बहुत बड़ा व विशाल है। वह अनलासूर राक्षस को पूरा निगल सकते हैं। शिवजी के कहने पर सभी देवताओं ने श्रीगणेश की स्तुति करके उन्हें प्रसन्न किया। गणेशजी ने अनलासूर से युद्ध किया और उसको पकड़कर निगल गये। निगलने के कारण उनके पेट में काफी पीड़ा व जलन उत्पन्न होने लगी। अनेक उपाय करने पर भी उनकी जलन शांत नहीं हुई। जलन शांत करने के लिए महर्षि कश्यप ने कैलाश से 21 दूर्वा एकत्रित करके एक गांठ तैयार की और उसे गणेशजी को खिलाया। दूर्वा खाते ही गणेशजी की जलन तुरंत शांत हो गई। मान्यता है कि तभी से श्रीगणेशजी को दूर्वा अर्पित की जाती है अर्थात् गणेशजी को दूर्वा चढ़ाते हैं। दूर्वा अर्पित करने से व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण व यशस्वी हो जाते हैं।

                गणेश जी को लड्डू अतिप्रिय क्यों? बिना मोदक व लड्डू के श्रीगणेशजी की पूजा अधूरी ही मानी जाती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने विनय पत्रिका में कहा है -

गाइए गनपति जगबंदन। संकर सुवन भवानी नंदन।।

सिद्धि-सदन गज बदन विनायक। कृपा-सिंधु सुंदर सब लायक।।

मोदकप्रिय मुद मंगलदाता।  विद्यावारिधि बुद्धि विधाता।।

                पद्म पुराण में उल्लेख मिलता है कि एक बार गजानन व कार्तिकेय के दर्शन करके सभी देवगण अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने माता पार्वती को एक दिव्य लड्डू प्रदान किया। उस लड्डू को दोनों बालक आग्रह करके मांगने लगे पर माता पार्वती ने उन्हें उस मोदक के गुण बताये और कहा कि इस मोदक की गन्ध से ही अमरत्व की प्राप्ति होती है। नि:संदेह इसे गंध लेने व खाने वाला सम्पूर्ण शास्त्रों का मर्मज्ञ, सभी तंत्रों में प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान, ज्ञान-विज्ञान विशारद और सर्व ज्ञाता हो जाता है। माता पार्वती ने कहा कि तुम दोनों में से जो भी अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेगा वही इस दिव्य मोदक को पाने का अधिकारी होगा। दोनों ही माता की आज्ञा लेकर चले गये। कार्तिकेय ने अपने तीव्रगामी वाहन मयूर पर आरुढ़ होकर त्रिलोक की तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े व सभी तीर्थों के दर्शन, स्नान आदि करने लगे। उधर गणेशजी अत्यन्त श्रद्धा भक्ति भाव से अपने माता-पिता की परिक्रमा हाथ जोड़कर करने लगे और कहा मुझे सब तीर्थ स्थानों के दैवीय दर्शन, अनुष्ठान व सभी प्रकार के व्रत करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हो गया। इस तर्क पूर्ण बात को सुनकर माता पार्वती प्रसन्न हो गयी और गणेशजी को मोदक प्रदान करते हुए व आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम सभी शुभकार्यों में पूजनीय होंगे।  तभी से श्रीगणेशजी को मोदक प्रिय है।

गणेशजी बुद्धि और ज्ञान के देवता माने गए हैं। प्रत्येक व्यक्ति व विद्यार्थी को माँ सरस्वती व श्रीगणेश का स्मरण व पूजा अर्चना करते रहना चाहिए, जिससे कि वह अनैतिकता, अनुशासन हीनता की ओर प्रेरित न हो। सभी बुद्धिजीवियो को चाहिए कि हर बुधवार गणपति को मोदक व दूर्वा अर्पित करके श्रीगणेशाय नम: का जाप करें।

भाद्रपद की चतुर्थी का चांद देखना वर्जित क्यों है? जब चंद्रमा की बात आती है तो शीतलता व सौन्दर्य का अहसास होने लगता है। एक कहावत भी है- चौथ के चांद जैसी खूबसूरती पूर्ण चंद्रमा में भी कहां! परंतु गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा (भाद्रपद की चतुर्थी) को देखने से व्यक्ति पर कलंक व आरोप आते हैं। इस दिन के चांद को देखना वर्जित है। इसके पीछे भी गणेश पुराण में एक कथा का उल्लेख मिलता है कि गणेशजी के विशाल कान व शरीर को देखकर और गजमुख को देखकर चंद्रमा को हंसी आ गयी, वह जोर-जोर से हंसने लगे। इस बात पर गणेशजी को क्रोध आया और उन्होंने चंद्रमा से कहा कि तुम्हें अपने रूप पर अहंकार हो गया है, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि जो कोई भी व्यक्ति तुम्हें इस दिन देखेगा उस पर कलंक लग जाएगा।

यदि जाने-अनजाने में इस दिन के चंद्रमा को कोई देख भी लें तो गणपतिजी के 108 नामों का उच्चारण कर 21 दूर्वा को एकत्रित कर उसका मुकुट बना ले और मोदक के साथ श्रीगणेश को अर्पित कर उनसे क्षमा याचना करें। इससे उनका कलंक दूर हो जाएगा।

गणेश जी को तुलसा अर्पित क्यों नहीं करते? भगवान विष्णु प्रिया होने से तुलसा जी के बिना भगवान को चढ़ाया गया प्रसाद पूर्ण नहीं माना जाता परंतु गणेशजी को तुलसा अर्पित करना वर्जित माना गया है। तुलसा जी को किसी भी रूप में गणेशजी स्वीकार नहीं करते। इसके पीछे गणेश पुराण में एक कथा का उल्लेख मिलता है कि एक बार गणेशजी गंगा किनारे तप कर रहे थे। उसी समय तुलसा जी अपने विवाह की इच्छा लेकर सभी तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए उस स्थान पर पहुंची जहां पर गणेशजी तपस्या कर रहे थे। गणेशजी देखकर तुलसा जी मोहित हो गयी व उनकी तपस्या को भंग कर दिया और अपने विवाह का प्रस्ताव उनके सामने रखा। तपस्या भंग होने के कारण गणेश जी काफी क्रोधित हो गए और उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा कि मैं एक ब्रह्मचारी हूं। यह बात सुनकर तुलसाजी को भी क्रोध आया और उन्होंने गणेशजी को श्राप दिया कि तुम ब्रह्मचारी न रहकर तुम्हारे एक नहीं दो विवाह होंगे। इसी बात पर गणेशजी पुन: क्रोधित हो गये और उन्होंने तुलसा जी को श्राप दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर शंखचूड से होगा और तुम राक्षस की पत्नी बनोगी। यह सुनकर तुलसा जी ने गणेशजी से क्षमा मांगी। गणेशजी ने उन्हें क्षमादान देते हुए कहा कि मैं श्राप तो वापिस नहीं ले सकता परंतु सतयुग में भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की प्रिय होने के साथ-साथ कलियुग में संसार को जीवन और मोक्ष प्रदान करेंगी। लेकिन जहां पर भी मेरी पूजा होगी वहां तुम्हें स्थान प्राप्त नहीं होगा। तभी से गणेशजी की पूजा व प्रसाद में तुलसा जी को वर्जित रखा गया है।

इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व 10 सितम्बर, 2021 को मनाया जाएगा।