ज्योतिष का बिच्छू

पं. सतीश शर्मा, एस्ट्रो साइंस एडिटर

प्रसिद्ध मुहूर्त्त ग्रन्थों में राजयोग देने वाले जिन नक्षत्रों की चर्चा है, उनमें ज्येष्ठा नक्षत्र अति महत्त्वपूर्ण है। ज्येष्ठा नक्षत्र वृश्चिक राशि में पड़ता है। यद्यपि वृश्चिक राशि के अन्य नक्षत्र भी अच्छे परिणाम देते पाए गये हैं। 2 बड़े उदाहरण लिख रहा हूँ कि भारतीय जनता पार्टी का जन्म नक्षत्र ज्येष्ठा है, जबकि नरेन्द्र मोदी का जन्म नक्षत्र अनुराधा है और ये दोनों ही वृश्चिक राशि में अर्थात् ये दोनों ही बिच्छू राशि के अन्तर्गत आते हैं।

बिच्छू को आप जानते ही हैं, ड़क पीछे होता है। राजनीतिज्ञों का डंक भी पीछे ही होता है। आप प्रत्यक्ष वार करते हैं, सामने नहीं आते। उनकी की गई कोशिशें बाद में परिणाम लाती है। उनका प्रकट व्यवहार कुछ और होता है और रणनीतिक व्यवहार कुछ और होता है। उनकी डिक्शनरी में माफी खाता नहीं होता। मैं कुछ प्रसिद्ध ज्योतिष बिच्छुओं का नाम तो लूँगा परन्तु इस समय जिन महाबिच्छुओं में घमासान चल रहा है, उनकी चर्चा कर लूँ।

शरद पंवार - शरद पंवार की जन्म राशि वृश्चिक नहीं है परन्तु जन्म लग्न वृश्चिक राशि में हैं और वह भी ज्येष्ठा नक्षत्र में हैं। इस देश के महान राजनीतिज्ञों में उनकी गणना हैं और वे उच्च कोटि के रणनीतिकार है। पर वे प्रधानमंत्री पद तक कभी नहीं पहुँच पाए। इस हेतु जब भी कोई गणना उन्हें करनी पड़ी, उनसे भारी जन्म नक्षत्र वाला व्यक्ति उनकी राह में रोड़ा बन गया। अभी भी उनका नाम राष्ट्रपति पद के लिए चर्चा में आया परन्तु गणित उनके खिलाफ है। क्यों? क्योंकि वृश्चिक राशि के ही दो सशक्त हस्ताक्षर उनके प्रतिद्वंद्वी हैं और उन्हें परास्त करके छोडेंगे। जो क्षणिक लाभ उन्हें महाराष्ट्र की राज्य सरकार में मिल रहे थे, अब उसमें भी समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं।

भारतीय जनता पार्टी इस समय ज्येष्ठा नक्षत्र और वृश्चिक राशि के कारण कभी बहुत कष्ट में थी, आज मौज में हैं। ऐसा ही नरेन्द्र मोदी जी के साथ है, परन्तु दोनों ही उसी नीच राशि में स्थित चन्द्रमा के कारण एक योग के कारण, जिसे नीच भंग राजयोग कहते हैं और दोनों का ही उत्थान तब हुआ जब नीच राशि में स्थित चन्द्रमा की महादशा आई। नरेन्द्र मोदी की दशा पहले शुरु हो गई और अब जब नरेन्द्र मोदी को चन्द्रमा की दशा समाप्त हो चुकी है और मंगल की महादशा शुरु हो चुकी है, तब भारतीय जनता पार्टी की राजयोग देने वाली दशा 2025 तक है। दोनों के महादशा क्रम एक दूसरे का परिपूरक हैं। नक्षत्र साम्य का ज्योतिष के इतिहास में यह अनुपम उदाहरण है।

क्या है नीच भंग राजयोग -

हर ग्रह की उच्च राशि होती है और नीच राशि भी होती है। नीच राशियों में बैठे हुए ग्रह को अच्छा नहीं माना जाता। परन्तु जो नीच राशि है उसका स्वामी ग्रह या जो नीच का ग्रह है वह जिस राशि में उच्च का होता है, वह जन्म लग्न से केन्द्र में या चन्द्रमा से केन्द्र में या दोनों से केन्द्र स्थान में स्थित हो तो वह ग्रह कमाल का परिणाम देता है।

भारतीय जनता पार्टी स्वयं वृश्चिक राशि की है तथा नरेन्द्र मोदी, अमित शाह तथा अटल बिहारी वाजपेयी भी न केवल वृश्चिक राशि के हैं बल्कि इनके नीच भंग राजयोग मौजूद है। अडवानी जी जन्म लग्न वृश्चिक राशि में हैं और लग्न नक्षत्र ज्येष्ठा है। श्री राजनाथ सिंह भी वृश्चिक राशि और वृश्चिक लग्न के हैं और उनका जन्म नक्षत्र ज्येष्ठा है। यह तो कमाल हो गया। क्या इस समय इस देश पर वृश्चिक राशि वाले शासन कर रहे हैं?

ऐसा नहीं कि केवल राजनीतिज्ञों के नीच राशि में चन्द्रमा होते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों के भी ऐसे मिल सकते हैं। उदाहरण के रूप में किरण बेदी एवं प्रसिद्ध मुक्केबाज माइक टाइसन। ये सारे लोग आरपार रिश्ते रखने वाले होते हैं। बिच्छू राशि में एक बड़ा भारी गुण या दुर्गुण होता है। वे यदि क्रुद्ध हो जाएं तो सौ गोलियाँ सौ लोगों में नहीं उतारेंगे बल्कि एक ही आदमी में सौ गोली उतार देंगे। शत्रु को ये बर्दास्त नहीं कर सकते और अपनी विजय की प्रतीक्षा में 20-30 साल आराम से गुजार सकते हैं। वृश्चिक राशि के चन्द्रमा को उसकी आधार राशि के स्वामी मंगल होने के कारण बल, पौरुष, चपलता, त्वरित निर्णय, मारक क्षमता और पूर्वाभास जन्म जात ही मिलते हैं। जीवन में जल्द ही शुरु होते हैं और बीच जवानी में ही उत्थान दे देते हैं। और नीच भंग राजयोग की दशा जल्द ही आ गई तो जल्दी परिणाम भी मिल जाते हैं। प्रसन्न हो गये तो जागीर बाँट देंगे और नाराज हो गये तो जान भी लेंगे।

आकाश में वृश्चिक राशि में जिन नक्षत्रों को शामिल किया गया है, वे बिच्छू की आकृति के हैं। यद्यपि पाश्चात्य ज्योतिष की वृश्चिक राशि भारतीय ज्योतिष की वृश्चिक राशि से बड़ी होती है क्योंकि उसमें मूल नक्षत्र को भी शामिल कर किया गया है। ध्यान रहें बिच्छू का डंक मूल नक्षत्र से  ही पूरा होता है। संभवतः यही कारण है कि धनु राशि के चन्द्रमा वाले लोग भी बहुत उन्नति पाते हुए देखे गये हैं।

भारत के महाबिच्छुओं में इस समय महायुद्ध चल रहा है। ऊपर के सारे उदाहरण बड़े आकार के बिच्छुओं के हैं और चूंकि वृश्चिक राशि या महाबिच्छुओं को बड़ा संघट्ट भारतीय जनता पार्टी में ही है इसलिए वृश्चिक राशिकी ही मुम्बई और वृश्चिक राशि के ही शरद पंवार इस जंग को नहीं जीत पाएंगे। शरद पंवार का पतन अब निश्चित है और कूटनीति दाँवपेचों में या रणनीतिकारों में जो उभर कर सामने आएंगे, कोई आश्चर्य नहीं वह भी कोई बिच्छू ही हो।

आज तो कोई भी नहीं मानेगा कि नरेन्द्र मोदी से कोई पार भी पा सकता है। परन्तु कल तक यही बात शरद पंवार के लिए भी कही जाती थी। किसी कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने भी उनको सत्ता से बाहर रखने की हिम्मत नहीं जुटाई। पर अब शक्तिशाली वृश्चिक राशि (बिच्छू) वाले राजनेताओं से उनका पाला पड़ा है।

 

गोचर फल विचार

ज्योति शर्मा

आज के वर्तमान युग में सभी के मन में जिज्ञासा होती है कि कौनसा दिन या महीना हमारे लिए अच्छा या बुरा होगा, कब से हम अच्छे कार्य की शुरुआत कर सकते हैं, कब हमें ग्रहों का संयोग प्राप्त होगा? सामान्य ज्योतिष सभी लोग जानने लगे हैं। मकर संक्रांति की बात करें तो सभी को ज्ञात है कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रांति कहलाती है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश ही संक्रांति है।

सूर्य संक्रांति अवधि -

14 जनवरी से 13 फरवरी - मकर राशि

14 फरवरी से 14 मार्च - कुंभ

14 मार्च से 15 अप्रैल - मीन

16 अप्रैल से 15 मई - मेष

15 मई से 15 जून - वृषभ

15 जून से 17 जुलाई - मिथुन

17 जुलाई से 17 अगस्त - कर्क

17 अगस्त से 16 सितम्बर - सिंह

16 सितम्बर से 17 अक्टूबर - कन्या

17 अक्टूबर से 16 नवम्बर - तुला

16 नवम्बर से 15 दिसम्बर - वृश्चिक

15 दिसम्बर से 14 जनवरी - धनु

टिप्पणी - कभी-कभी 13, 15, 16, 17 तिथियों को भी सूर्य राशि परिवर्तन कर लेते हैं। सूर्य संक्रांति की सही तिथि ज्ञात करने के लिए पंचांग की मदद लेनी चाहिए।

प्राचीन काल से ही भारतीय ज्योतिष में प्रतिदिन का विचार चंद्र नक्षत्र से किया जाता है व महीने का विचार अर्थात् एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति कैसे व्यतीत होगी, यह विचार किया जाता है। इसलिए व्यक्ति को अपने जन्म नक्षत्र के साथ-साथ 27 नक्षत्रों का भी ज्ञान होना आवश्यक है। उपर्युक्त सारिणी में सूर्य राशि परिवर्तन की अवधि बताई गई है, जिससे आपको महीने का अच्छा-बुरा समय ज्ञात हो सकता है। आपकी सुविधा के लिए 27 नक्षत्रों की सारिणी इस प्रकार से है -

नक्षत्र स्वामी                                   -     नक्षत्र           

केतु                                                          -     अश्विनी, मघा, मूल         

शुक्र                   -              भरणी, पू.फा. पू.षा.

सूर्य                   -              कृत्तिका, उ.फा., उ.षा.

चंद्रमा                  -              रोहिणी, हस्त, श्रवण

मंगल                  -              मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा

राहु                   -              आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा

गुरु                   -              पुनवुर्स, विशाखा, पू.भार्द्र

शनि                   -              पुष्य, अनुराधा, उ.भार्द्र

बुध                   -              आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती

सूर्य संक्रांति के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में हो उसके पूर्व से गिनना प्रारम्भ करें और अपने जन्म नक्षत्र तक गणना करें। गणना करने पर जो संख्या आए उस संख्या को संक्रांति नक्षत्र फलचक्रम् से ज्ञात करें कि यह महीना आपका कैसा होगा? उदाहरण के लिए मान लें कि मेष राशि में सूर्य का प्रवेश 13 अप्रैल रात्रि 10.54 मिनिट पर होता है, उस समय चंद्रमा मिथुन राशि व आर्द्रा नक्षत्र से गोचर कर रहे हैं। आर्द्रा से पूर्व मृगशिरा नक्षत्र आता है। किसी जातक का जन्म नक्षत्र कृत्तिका है, मृगशिरा से जन्म नक्षत्र कृत्तिका तक गणना करने पर 26 संख्या आती है। संक्रांति नक्षत्र फल सारिणी में 26 संख्या का फल ज्ञात कीजिए, उस जातक का वह संक्रांति माह वही फल देगा।

इसी प्रकार आप अपने जन्म नक्षत्र से और संक्रांति के समय चंद्र नक्षत्र से अपने महीने का फल ज्ञात कर सकते हैं। संक्रांति नक्षत्र फल चक्र निम्न है -

संक्रांति प्रवेश समय नक्षत्र           -      फल

से जन्म नक्षत्र तक की संख्या

1, 2, 3                                                                            -      यात्रा योग

4 से 9                                                                          -      सुख प्राप्ति व भोग-विलास

10 से 12                                                                     -      कष्ट व बाधाएं

13 से 18                                                                     -      शुभ व वस्त्र प्राप्ति

19 से 21                                                                     -      धन हानि व बाधाएं

22 से 27                                                                     -      धनाग्मन व अनुकूलता

 

राहु का स्वरूप तथा ग्रहों के साथ युति के फल

समुद्र मंथन में सभी रत्नों के निकल जाने के बाद जब अमृत प्राप्त हुआ और भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत तथा राक्षसों को शराब (मदिरा) पिला रहे थे तो उधर भगवान ब्रह्मा ने स्वर्भानु को दर्शन दिया और अमृत प्राप्ति की बात कही और कहा कि यदि तुम अमृत पी सकोगे तो तुम अवश्य ही पूजे जाओगे। स्वर्भानु तुरन्त उस स्थान पर पहुंचा जहां अमृत का वितरण हो रहा था, स्वर्भानु ने देखा कि मोहिनी रूप धारण किये हुये विष्णु जी राक्षसों को मदिरा और देवताओं को अमृत पिला रहे हैं तो स्वर्भानु देवताओं का रूप धारण कर सूर्य व चन्द्र देव के बीच में पहुंच गए, विष्णु भगवान ने जब अमृत स्वर्भानु को दिया तो चंद्र व सूर्य देव ने पहचान कर कहा कि ये तो राक्षस है तब तक स्वर्भानु अमृत पी चुका था, विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शनचक्र से स्वर्भानु का मस्तक धड़ से अलग कर दिया, अमृत पान के कारण स्वर्भानु मरा नहीं, कालान्तर में सिर का राहु व धड़ का केतु नाम पड़ा, ब्रह्माजी ने ग्रहों में इन्हें स्थान दिया।

इन्हीं राहु-केतु के अलग-2 ग्रहों के साथ युति के अलग-अलग फल होते हैं। राहु व सूर्य यदि शुभ राशियों में, मित्र राशियों में, शुभ ग्रहों से दृष्ट तथा जन्म पत्रिका के लग्र, तृतीय, पंचम, दशम तथा द्वादश भाव में स्थित हों तो मान सम्मान की प्राप्ति होती है। जीवन में भ्रमण का कार्यक्रम अचानक बनता है और जिस उद्देश्य के लिए भ्रमण होता है लगभग पूर्ण होता है, व्यक्ति किसी भी कार्य को अपने हाथ में ले लें तो पूर्ण अवश्य करता है, न्याय व अन्याय में अन्तर समझता है तथा सदैव सत्य का साथ देता है, यदि यह युति द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम में हो तो झगड़े करने वाला, तामसी प्रवृत्ति वाला, पूवार्जित धन नष्ट करने वाला, परस्त्री में आसक्त रहने वाला तथा शेष षष्ठम अष्ठम, नवम व एकादश भाव में स्थित युति से जातक अकारण शत्रुता करने वाला, रिसर्च में व्यस्त रहने वाला, धार्मिक कार्य में रुचि न लेने वाला, कुमार्गों से धन कमाने वाला होता है।

राहु की चन्द्रमा से युति यदि मित्र या स्व राशि में हो तथा अन्य शुभ ग्रहों से दृ्रष्ट  हो तो व्यक्ति निज स्वार्थ को छोड़ सामाजिक कार्य करता है, जिसके फलस्वरूप लोकप्रिय होता है, स्वतंत्र व्यापार करने में असमर्थ होते हैं यदि व्यापार करे तो भी सफलता प्राप्त नहीं करते हैं, व्यापार में संकटों का उपाय नहीं कर पाते हैं, यदि कोई इन्हें नौकरी करने की सलाह दे तो इन्हें पसंद नहीं होती है, एकान्त पूर्ण वातावरण में रहना पसन्द करते हैं,

यदि यह युति जन्म पत्रिका में लग्र, तृतीय तथा नवम् में हो तो अशुभ होती है, मृत्यु भी अचानक आती है।

राहु व मंगल युति यदि शुभ राशियों में शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तथा जन्म पत्रिका में लग्र तृतीय षष्ठम तथा दशम भाव में हो तो व्यक्ति पराक्रमी, समाज सुधार का कार्य करने वाला बुराई प्राप्ति की परवाह न करने वाला। यदि यह युति अशुभ राशि में या अशुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो स्त्री से असंतुष्ट, अदालती कार्यों में असफल होता है। धन स्थान में यह युति शुभ राशि में हो तो ब्याज के रूप में धन लाभ होता है। जातक के धन से दूसरों को कल्याण नहीं होता है। चतुर्थ में यह युति हो तो पूर्वार्जित पैतृक सम्पति नष्ट हो जाती है। चतुर्थ भाव में राहु तथा दशम भाव मंगल हो तो जातक जिस भवन में निवास करता है उसमें वास्तु दोष होता है जिसके कारण संतान तथा स्त्रीघात आदि से कष्ट होता है। पंचम स्थान में यह युति संतान सम्बन्धि दोष उत्पन्न करती है। सप्तम में यह युति संतान सम्बन्धी दोष उत्पन्न करती है। सप्तम में यह युति हो तो विवाह देर से होता है तथा पहली स्त्री से सम्बन्ध ठीक न रहने से दूसरा विवाह होने की संभावना होती है। राहु सर्प के समान है तथा मंगल नेवले के समान है। अतः जातक को मंगल के प्रभाव से विषघात नहीं हो पाता।

राहु-बुध

यदि युति मित्र राशि में शुभ ग्रह से दृष्ट दशम व एकादश भावों में हो तो जातक बुद्घिमान कार्य सम्बन्धी विषय को समझने वाला, शिक्षा पूर्ण होती है।

यदि युति शत्रु राशि में हो या अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक की शिक्षा, अधूरी रहती है, अस्थिर स्वभाव, घमंड़ी भी हो सकते हैं, खुद को दूसरों की अपेक्षा ज्यादा होशियार समझते हैं।

अन्य स्थानों भावों में अशुभ सम्बन्ध हो तो शान्त बुद्घि वाला, एक से ज्यादा विवाह,पागलपन, स्मरण शक्ति नष्ट होने की संभावना रहती है।

राहु-गुरु- युति शुभ हो तो सम्मान की प्राप्ति होती है, अधिकार की भी प्रçाप्त होती है, यदि जातक राजनीति में हो तो सफलता प्राप्त होती है, यदि यह युति जन्म पत्रिका के 1,2,4,5,7,9,10,11 भाव में हो तो अच्छी सफलता प्राप्त होती है, पैतृक सम्पति प्राप्त होती है,

राहु व गुरु लग्न में धनु या मीन में हो तो अरिष्ट योग, त्रिकोण में अथवा किसी भी भाव में राहु, गुरु व शनि की एक साथ युति हो तो भी अरिष्ट योग होता है।

पाराशर के मतानुसार राहु व गुरु धनु या मीन में हो और गुरु षष्ठम या अष्टम का सवामी हों तो जातक अल्पायु होता है।

यह युति गुरु चाण्डाल योग भी बनाती है क्योंकि गुरु ब्राह्मण तथा राहु चाण्डाल जाति का माने जाते हैं।

राहु-शुक्र

युति यदि शुभ हो अर्थात् मित्र राशि में शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो विवाह आकस्मिक होता है, स्त्री निर्धन परिवार की होती है। स्त्री सुख अच्छा प्राप्त होता है, जातक से पहले पत्नी की मृत्यु होती है।

यदि युति अशुभ होकर 3,6,7,8,12 भाव में हो तो पत्नि से लम्बे समय तक सुख की प्राप्ति नहीं होती है, विवाह के बाद आर्थिक कष्ट होता है।

राहु-शनि

युति लग्न में हो शुभ ग्रहों से दृष्ट तो बचपन में कष्ट होता है, द्वितीय, तृतीय, में हो तो पैतृक सम्पत्ति को  बढ़ाने वाला जीवन के मध्य से भाग्योदय होता है। स्वभाव शान्त रहता है, नौकरी या व्यवसाय करने पर उच्चाटन की प्रवृत्ति नहीं होती है, यदि युति अशुभ हो तो बचपन ननिहाल में व्यतीत होता है, चतुर्थ, पंचम षष्टम में युति हो तो उचे स्तर का व्यवसाय करने वाला उदार प्रकति का होता है, विवाह में बिलम्व, अपने ही बारे में सोचने वाला, इनके विरोधी अधिक होते हैं, अनुवांशिक रोग की संभावना होती है, सप्तम, अष्टम व नवम स्थान में युति हो तो एक से अधिक विवाह की संभावना, जीवन का प्रथमार्थ सुख में तथा उत्तरार्द्घ कठिन व्यतीत होता है, स्त्री मध्यमस्तरीय परिवार की होती है, रहस्यमयी विद्या को जानने वाले होते है, जीवन के 32 वे वर्ष से भाग्योदय होता है, दशम, एकादश व द्वादश भाव में युति हो तो कार्य क्षेत्र में उलझे रहते है, संतान प्राप्ति में बाधा, लालची अधिकार व सम्पत्ति के लिए गलत मार्ग को अपनाने वाले किन्तु बड़े व्यवसाय में सफलता मिलती है, विदेश गमन होता है।

 

धंधा बाँध दिया है क्या करें?

निलकेश अग्रवाल

अधिकांश लोग यह कहते हुये नजर आते हैं कि पता नहीं हमारे धंधे को किसकी बुरी नजर लगी है कि व्यवसाय चल ही नहीं पा रहा है। लाभ की अपेक्षा हानि अधिक हो रही है अथवा यह कि पिछले दो महीनों से धंधे में अचानक रुकावट आ गई है। जिस गति से व्यवसाय चल रहा था, एक दम से गति अवरुद्ध हो गई है। शायद हमारे धंधे को किसी ने बांध दिया है।

आज विज्ञान का युग है जिसमें इन अप्रत्यक्ष क्रिया-कलापों और मान्यताओं को बड़ी कठिनाई से स्वीकार किया जाता है। इसका पता तब चलता है या आभास होता है जबकि कोई ऐसी कार्यप्रणाली अपनाई जाती है जो कि इन बंधनों से मुक्ति दिलाने से सम्बन्धित होती है, जिन्हें कि उत्कीलन की श्रेणी में लिया जा सकता है उनके अपनाते ही व्यवसाय में पुनः गति आती है, आय में वृद्धि होती है।

बाँधने की क्रिया को कीलन या स्तम्भन कहते हैं और बँधे हुये को मुक्त करने की क्रिया उत्कीलन कहलाती है। कीलन सकारात्मक और नकारात्मक रूप में दो प्रकार से प्रयोग में लिए जाते हैं, जैसे -

किसी के कार्य व्यवसाय में विस्तार से अन्य लोगों को हानि हो रही हो तो कीलन की विशेष प्रक्रिया द्वारा उसके व्यवसाय की गति को रोक दिया जाता है, कील दिया जाता है या स्तम्भित कर दिया जाता है अथवा किसी स्थान पर जब भूत-प्रेत-पिशाच आदि का निवास हो जाता है या वे नित्य परेशान करें और पारिवारिक कलह अथवा व्यवसाय में हानि होने लगे तो कीलन की विशेष प्रक्रिया द्वारा उस स्थान का कीलन किया जाता है, जिससे ये तामसिक शक्तियाँ पुनः उस स्थान में प्रवेश नहीं कर पातीं किन्तु इस प्रकार के कीलन से पूर्व उत्कीलन की प्रक्रिया आवश्यक होती है मतलब कि किसी स्थान से इन अशुभ प्रभावों की रक्षा के लिये सर्वप्रथम उस स्थान को शुद्ध किया जाता है, दुष्प्रभावों से मुक्त किया जाता है। दुष्प्रभाव रहित स्थान का कीलन करने पर भूत-पिशाच आदि पुनः प्रवेश नहीं कर पाते। इन विधियों को क्षेत्ररक्षण की विधियाँ कहा जाता है। जैसे-

मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक।।

रामचरितमानस की इस चौपाई का बड़ा महत्व है। जाने-अनजाने में कभी आप किसी ऐसे स्थान पर पहुँच जायें जहां कि भूत-प्रेत-पिशाच आदि का अथवा विषैले जीव-जन्तुओं का भय हो। जैसे कि ठीक मध्यान्ह और ठीक मध्य रात्रि में अकेले किसी वीरान मार्ग पर मध्य में नहीं चलना चाहिए, वीरान चौराहे को पार नहीं करना चाहिये और ना ही कुछ मीठी वस्तु खाते हुये निकलना चाहिये, साथ ही स्ति्रयों को श्रृं्रगार, सुगंध का प्रयोग  करके, खुले बालों से और मेंहंदी लगे हरे हाथों से अकेले नहीं गुजरना चाहिये और घर की मुख्य मोरी (नाला) पर लघु शंका का समाधान भी नहीं करना चाहिये। उपरोक्त कार्यों में मध्यरात्रि और मध्यान्ह का विशेष ध्यान रखा जाता है। लेकिन कोई परिस्थिति ही ऐसी बन जाये कि आपको आना या जाना ही पड़े अथवा किसी निर्जन पुराने स्थान पर अकेले शयन करना पड़े तो मानस की इस चौपाई का निरन्तर जाप और हनुमान जी का ध्यान, आपको आत्मबल प्रदान करता है। चाहे आप श्मशान में भी अकेले रहें तो भी कोई भूत-प्रेत आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

ऐसे ही व्यवसाय के बंधन खोलने के विषय मे कुछ प्रयोग बड़े कारगर सिद्ध होते हैं।

उत्कीलन का मंत्र                                                  

सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याऽखिलेश्वरी।

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ।।

श्री दुर्गा सप्तशती का यह मंत्र अत्यन्त प्रभावशाली है। कभी ऐसी अनुभूति हो कि व्यापार को किसी ने बँधा दिया है तो व्यापारिक प्रतिष्ठान पर प्रातः माँ दुर्गा का सिंह पर सवार कोई चित्र या मूर्ति स्थापित कर, घी का दीपक लगाकर, पीली सरसों के कुछ दाने बाँये हाथ में मुट्ठी बंद करके रखें और सीधे हाथ में रुद्राक्ष की माला को कपड़े से ढक कर, एकाग्र होकर उपरोक्त मंत्र का जाप करें। एक माला पूरी होने पर बाँये हाथ में रखे हुये सरसों के दानों को पूरे व्यापारिक स्थल पर दसों दिशाओं में बिखेर देवें। यह प्रयोग एक मास तक करने से कैसी भी बाधा व्यवसाय में आ रही हो दूर हो जाती है।

इस प्रयोग के अतिरिक्त एक प्रयोग और है जो कि इस प्रकार के व्यवसायिक बंधनों को खोलने में समर्थ है।

मंत्र

हनुमन् सर्वधर्मज्ञ, सर्वकार्य विधायक।

अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तुते।।

इस मंत्र का प्रयोग किसी व्यक्ति पर जो कि भूत-प्रेत या किये-कराये, अभिचार कर्म से ग्र्रसित हो उस पर, किसी मकान पर अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान, जिसको किसी शत्रु ने बँधा दिया हो, उसके बंधन तोड़ने में यह मंत्र अति प्रभावशाली सिद्ध होता है।

प्रयोग : पीड़ित स्थान पर प्रतिदिन इस मंत्र के 3000 जप करें, ग्यारह दिनों में 33000 जाप पूरे हो जाते हैं। जाप पूरे हो जाने पर 3300 आहुतियों से दशांश हवन या जाप करके, 33 ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। ऐसा करने से अचानक आई विपत्तियाँ, व्यापारिक बाधाएं बहुत जल्दी समाप्त हो जाती हैं, निरन्तर अच्छी आय होने लगती है।