अग्निवीर का भविष्य

पं. सतीश शर्मा

इन दिनों भारत में अग्निवीर योजना से सम्बन्धित चर्चाएँ चल रही हैं और कहीं-कहीं उपद्रव भी हंै। सरकार की 2 वर्ष की मेहनत के बाद जो ड्राफ्ट तैयार हुआ, उसको कुछ राजनैतिक दलों ने मुद्दा बना लिया तथा इसके कारण से जो व्यापक हिंसा हुई है, ट्रेनें जलाई गई हैं, उनकी पृष्ठभूमि में हिंसा के लिए प्रेरक संस्थाओं में व्यावसायिक कोचिंग वालों का भी हाथ बताया जा रहा है। यह चिन्ताजनक है।

संसार भर में 50 से अधिक ऐसे देश हैं जिनमें 1 से 2 साल की मिलिट्री सेवा देनी ही पड़ती है। कई देशों में तो इसकी अवधि 2 वर्ष से भी अधिक है। उत्तर कोरिया में 10 वर्ष पुरुषों के लिए और 5 वर्ष महिलाओं के लिए, इजराइल में 2 वर्ष से 4 वर्ष परन्तु पायलट्स के लिए 9 वर्ष, मिस्र में 2 वर्ष से 3 वर्ष के बीच में, चाड में 3 वर्ष, तुर्कमेनिस्तान में ढाई वर्ष तथा वियतनाम में 3 वर्ष की फौज की सेवा जरूरी है। कई लोकतांत्रिक देशों में ऐसी व्यवस्था है। परन्तु भारत में घटिया राजनीति के कारण राष्ट्र हित में की जा रही कार्यवाहियों पर भी विरोध उत्पन्न हो जाता है। राष्ट्रहित में एक हो जाने की प्रवृत्ति अब धीरे-धीरे समाप्त सी हो गई है। मुझे राष्ट्र की चिन्ता को ज्योतिष के आइने में ही देखना होगा क्योंकि इसी पेज पर हम ग्रहों के वक्री हो जाने को लेकर कई लेख लिख चुके हैं और उन सभी में यह आशंका व्यक्त की गई थीं कि घटनाएँ घटेंगी, अशांति फैलेगी और जान-माल को नुकसान होगा। यह भी कि ग्रहों के वक्रत्व इस श्रेणी के हैं कि इतिहास बनाने वाली घटनाएँ घटेंगी। ऐसा चल भी रहा है, पूरे विश्व में भी और भारत में भी। अगली आशंका जुलाई के बाद के समय की है, जब बृहस्पति और शनि एक साथ वक्री रहेंगे और वह भी काफी दिनों के लिए।

 

भारत की जन्म पत्रिका प्रदर्शित कर रहा हूँ। वृषभ लग्न की इस जन्म पत्रिका में इस समय भारत चन्द्रमा की महादशा से गुजर रहा है और दिसम्बर 2022 तक बुध की अन्तर्दशा है। दोनों ग्रहों का सम्बन्ध जन्म पत्रिका के दूसरे, तीसरे और पाँचवें भाव से है, जो भारत की मजबूत होती हुई आर्थिक स्थिति, कुशल राजनय और बढ़ती हुई पद-प्रतिष्ठा की सूचक है। जन्म पत्रिका के तीसरे भाव में पाँच ग्रह स्थित हैं और भारत की जन्म पत्रिका में भाग्यभाव को देख रहे हैं। यह शक्तिशाली संकेत हैं कि भारत का अभ्युदय होना ही होना है और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और रुपये की स्थिति में सुधार आयेगा। आर्थिक स्थिति सुधरेगी। सत्ता दल को कोई कष्ट नहीं होगा।

जहाँ तक अग्निवीर योजना का प्रश्न है, शनिदेव इसका जवाब दे रहे हैं। गोचरवश इस समय दशम भाव में कुम्भ राशि में वक्री हैं और वे 12 जुलाई को वापिस मकर राशि में आ जाएंगे। यह सरकार के लिए वरदान सिद्ध होगा, क्यों कि भारत के भाग्यभाव में स्थित वक्री शनि कई महीनों तक छठे भाव को अर्थात् शत्रु भाव को देखेंगे। अतः सरकारी पक्ष के शत्रुओं को भारी हानि होगी। जुलाई मास में ही एक घटना और घटेगी जब बृहस्पति 29 जुलाई को वक्री हो जाएंगे। या तो सोने पे सुहागा या करेला  नीम चढ़ा। आप समझ ही गये होंगे कि अग्निवीर योजना का विरोध करने वाले किसी भी हद तक जाएंगे और कई मुद्दों को इकट्ठा  करके अपने आंदोलन को धार देने में लगे रहेंगे। शनि और गुरु एक साथ 23 अक्टूबर तक वक्री हैं और इस अवधि में कम धमाल नहीं मचाएंगे। केन्द्र सरकार को भी अपने पूरे हाथ खोलने का मौका मिलेगा और केन्द्र सरकार अपने कुछ उद्देश्यों को अंतिम परिणिति तक पहुँचाने में सफल हो जाएगी। चाहे ये मुकद्मे हों और चाहे वे योजनाएँ हों। 

अग्निवीर योजना सफल हो जाएगी। केन्द्र सरकार को वापिस नहीं लेना पड़ेगा तथा केन्द्र सरकार अपनी तरफ से ही एक, दो संशोधन और प्रस्तुत करने वाली है। शनि का वक्री होने का अर्थ प्रजा और बृहस्पति के वक्री होने का अर्थ अमात्य वर्ग। अर्थात् मंत्रिमण्डल अपनी प्रजा के पक्ष में निर्णय लेगा। बृहस्पति तो बाद में भी काफी दिनों तक वक्री रहेंगे। अर्थात् 24 नवम्बर तक, परन्तु उससे पहले ही मंगल वक्री होकर सेना के उद्देश्यों की पूर्ति करेंगे। इसमें हथियारों की आपूर्ति, दूसरे देशों को हथियारों का विक्रय तथा सेनाओं का विस्तार शामिल है। विस्तार का अर्थ निश्चित रूप से अग्निवीर जवानों की भर्ती है। इन सब को देखते हुए तथा ग्रहों की चाल को देखते हुए यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि अग्निवीर योजना सफल हो जाएगी तथा इसको सफल बनाने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर प्रशासनिक कार्यवाहियाँ की जाएंगी।

क्या हिंसा में जुटे हुए युवक शांत हो जाएंगे? निश्चित रूप से शांत हो जाएंगे, क्योंकि जैसे ही बृहस्पति 29 जुलाई को वक्री हुए, सरकार के मंत्रिगण और तमाम सरकारी अमला लोगों को यह समझाने में सफल हो जाएगा कि अगर बहुत सारे राष्ट्रों में यह योजना सफल हुई है तो भारत में भी अवश्य सफल होगी और बेरोजगारी की समस्या हल होने में भी मदद मिलेगी। बिना ज्योतिष के भी यह तो समझ में आ रही रहा है कि जो लोग हिंसा में शामिल हैं, पुलिस वेरिफिकेशन में उनके नाम कट जाएंगे तथा 40 वर्ष के उम्र के लोगों का प्रदर्शन और हिंसा में भाग लेना भी एक नकारात्मक छवि को बना रहा है।

नवम्बर में भारत की जन्म राशि पर और उसके आसपास की राशियों पर कई ग्रहों का जमघट रहेगा, जो भारत को, भारत पर शासन करने वाली पार्टी को तथा राष्ट्र हितों को सशक्त बनाता है। इसलिए नीतियों को दृढ़ता से लागू किया जाएगा। परन्तु चूंकि नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही वृश्चिक राशि के हैं, इसलिए वृश्चिक नीति का जबरदस्त प्रयोग देखने को मिलेगा और उच्च कोटि की कूटनीति और राजनय का कुशल प्रबन्धन देखने को मिलेगा। चूंकि कुम्भ राशि अत्यधिक सक्रिय है और 12 जुलाई को मकर में आने के बाद यही शनि जनवरी 2023 में वापिस कुम्भ राशि में आ जाएंगे, जहाँ वे 2025 के मार्च के महीने तक रुकेंगे, बड़ी घटनाएँ देखने को मिलेंगी। एक तरफ भारत शक्तिशाली होता रहेगा, दूसरी तरफ कुम्भ राशि का धर्म से सम्बन्ध है, घट स्थापना से सम्बन्ध है, जल से सम्बन्ध है और उत्थान से सम्बन्ध है। शनि कुम्भ राशि पर्यन्त इन सब भावनाओं को आगे बढ़ाने का काम करेंगे।

 

गुणग्राही बुध

बुध ग्रह को ना तो पाप ग्रह की संज्ञा दी गई है और ना शुभ ग्रह की। वे जिस ग्रह के साथ स्थित होते हैं, उसी ग्रह के स्वभावानुसार शुभ या अशुभ फलदायी बन जाते हैं। वणिक वçृत्त, पाण्डित्य, कला एवं निपुणता, तेजस्विता एवं कोमल स्वभाव इनके नैसर्गिक कारकत्वों में सम्मिलित हैं।

बुध स्वयं चिकित्सक हैं तथा चिकित्सा या उपाय करने में अग्रसर रहते हैं। चन्द्रमा औषधि के स्वामी हैं, बुध की चिकित्सा शक्ति को चन्द्रमा का साथ मिलने पर व्यक्ति अच्छा चिकित्सक बन सकता है।

बुध में विद्या की प्रधानता है। बृहपति ज्ञान के परम कारक हैं। ज्ञान तथा विद्या में जो सूक्ष्म अंतर है, वही अंतर बृहस्पति तथा बुध के गुणों में है।  बृहस्पति गुरु हैं अतः वे ज्ञान देते हैं, बुध ज्ञान का प्रयोग करते हैं। वे ज्ञान के माध्यम से कार्य सिद्घि करने की कोशिश में रहते हैं। बृहस्पति के प्रभाव में व्यक्ति में ज्ञान का आधिक्य निश्चित होता है, किन्तु बुध के सहयोग के बिना उस ज्ञान को, विद्या बनाकर कार्य-कारण भाव से उसका प्रयोग करना असंभव है। बृहस्पति निधिरक्षक (खजांजी) भी हैं। वे संपत्ति का एकीकरण तथा रक्षा करते हैं किन्तु बुध वणिक हैं। वे संपत्ति का निवेश आदि मार्गों से सदुपयोग कर, उसमें वृद्घि की कामना करते हैं।

बुध ज्योतिषी भी हैं। बृहस्पति तथा बुध में यह भी एक समान गुण धर्म है। बुध वाणी के कारक हैं। वाक्शक्ति, कला, निपुणता आदि बुध के विषय हैं। विवाह स्थल, आमोद-प्रमोद की जगह आदि उनके प्रिय स्थल हैं। वे शिल्पकार हैं। बुध में कला का प्रयोग करने की क्षमता है। शुक्र कला के स्वामी हैं। वे कला प्रदान करते हैं। बुध उस कला को एक साँचे में ढालकर इस्तेमाल करने का रास्ता बनाते हैं। शुक्र की कलात्मकता तथा सृजनशीलता अनंत है। बुध उसे किसी निश्चित दिशा में ले जाकर उसका अधिक प्रयोग कराने की चेष्टा करते हैं। वे स्वयं वाक्पटु हंै। शब्द तथा शब्द शास्त्र पर उनका पूर्ण अधिकार है। वे व्याकरण के अधिकारी हैं। शुक्र की कला रचनात्मकता तथा सृजनशीलता का साथ होने पर वे अच्छे लेखक को जन्म दे सकते हैं। उस संयोग में चन्द्रमा की रसिकता हो तो एक उत्कृष्ट कवि का जन्म होता है। शब्द, छंद, पद आदि सुव्यवस्थित पद्घतियों से किया गया काव्य बुध की ही देन है।

शुक्र प्रदर्शन के कारक हंै किन्तु उसे मूर्त्त रूप देने का कार्य शिल्पी बुध ही कर सकते हैं। ललितकलाएँ तो बिना बुध देव के आशीर्वाद के सिद्घ होती ही नहीं हैं।

बुध वाणी के कारक हैं, शुक्र अच्छा सुर प्रदान करें तथा चन्द्रमा अच्छी आवाज प्रदान करें तो एक अच्छा गायक बनने के लिए बेहतर स्थिति बन जाती है। बुध के प्रभाव में व्यक्ति शब्दोच्चारण भी उच्च कोटि की शुद्घता से करता है। मंत्र शास्त्र में भी उच्चारण का महत्व अनन्य है। शुद्घ, स्पष्ट उच्चारण से ही मंत्र की सिद्घि संपूर्ण होती है।

बुध सूझबूझ एवं समझ देते हैं। यह सूझबूझ एवं समझ ही तर्क को जन्म देती है जो कि मंगल का विषय है। बुध सत्य-असत्य वचन के निर्णायक भी होते हैं। बुध जितनी मधुर, सुव्यवस्थित तथा शुद्घ, स्पष्ट वाणी के दाता हैं, उतनी ही वाणी की छद्मता भी देते हैं। शब्द श्लेष, शब्द कटाक्ष, शब्दों से बाण चलाना ये सब बुध के कारनामे हैं। इस छ्दम को मंगल आदि का साथ मिल जाए तो व्यक्ति सफेद झूठ बोलता है। मंगल झूठ बोलने की वृत्ति देते हैं किन्तु बुध तो मंगल का थोड़ा सा साथ मिलते ही सफेद झूठ भी बुलवा सकते हैं। बृहस्पति का दंभ जैसे व्यक्ति को बड़बोला (अवास्तव वचनयुक्त) बनाता है। बुध का प्रभाव झूठ को ही वास्तव का रूप देने में समर्थ बनाता है। बुध यदि वक्री हों तो ये प्रभाव बेहद आसानी से देखा जा सकता है।

बुध, सूर्य के हमेशा निकट रहते हैं अतः वे स्वयं अत्यंत तेजस्वी हैं। बलवान बुध होने पर व्यक्ति की कांति अत्यंत ओजस्वी हो जाती है। बुध की मेधा शक्ति को, सूर्य की ऊर्जा का साथ मिलने पर व्यक्ति अत्यंत मेधावी बनता है। इसी को बुधादित्य योग के नाम से भी जाना जाता है। यह बुध की विशेषता ही होगी कि अस्तंगत होने पर भी बुध का प्रभाव कम नहीं होता है।

बुध का शनिदेव से भी गहरा संबंध है। शनि के बुध मित्र कहलाते हैं। स्वभाव से दोनों नपुंसक ग्रह कहलाते हैं। शनि बुध एकत्रित रूप से जिस भाव को प्रभावित करें, उस भाव से संबंधित उदासीनता देते हैं। बुध चेतना संस्था तथा मज्जा संस्था के अधिपति हैं। शनि स्नायुमंडल के स्वामी हैं। शनि या बुध की परस्पर अशुभता या पाप प्रभाव हो तो लकवा, जो कि चेतना संस्था तथा स्नायुमण्डल यानि की बुध एवं शनि से संबंधित है, हो सकता है। शनिदेव स्वयं न्यायदाता हैं किन्तु न्याय विवेक बुध का क्षेत्र है, जो सुझबूझ से संबंध रखता है।

बुध का ज्ञान अगर केतु से प्रभावित हो तो वह ब्रह्म ज्ञान की ओर अग्रसर हो सकता है। केतु आध्यात्मकारी हैं। वे मोक्ष प्रदाता हैं। बुध की समझ, ज्ञान तथा वाणी आदि को केतु के शुभ प्रभावों की थोड़ी सी भी साझेदारी मिल जाए तो बुध के शुभ गुणों का उद्धार होना निश्चित है।

बुध की विशेषताएँ वास्तव में अनन्य हैं। समस्त ग्रहों के कुछ ना कुछ गुण बुध में समाए हैं। वे अत्यंत आनुपातिक है। बुध का वर्णन करते हुए उनका शरीर भी अत्यंत आनुपातिक बताया गया है। शरीर के साथ-साथ बुध में गुण धर्मों की भी आनुपातिकता है।

यह सब होते हुए बुध में कुछ विशेष गुण है। वे बेहद वणिक वृत्ति के है। वे गणितज्ञ है। हर बात में फायदा नुकसान का विचार करते हें। वे इसीलिए बनिया ग्रह भी कहलाते है। बुध यदि शुभ अंशों में हों तो व्यक्ति मेधावी होने के साथ-साथ बेहद व्यावहारिक भी बनता है। बुध हर क्षेत्र में व्यक्ति को कुछ ना कुछ आशीर्वाद देते हैं।

 

ग्रह प्रदत्त कष्ट

जन्मान्तर कृतं पापं व्याधि रूपेण जायते। भारतीय प्राचीन ज्योतिष एवं आयुर्वेद दोनों ही शास्त्रों में यह मान्यता है कि मनुष्य अपने पूर्वार्जित अशुभ एवं पाप कर्मों के कारण रोगी बनता है। इसकी जानकारी जातक की कुण्डली में स्थित ग्रहों की स्थिति के अनुसार की जाती है।

आहार-विहार की प्रकृति, विरोधी चाल-चलन एवं अनियमितता के कारण ही रोग होते हैं और यदि मनुष्य इन पर समुचित नियंत्रण रखे तो वह स्वस्थ एवं दीर्घायु प्राप्त कर सकता है परन्तु पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप ही ग्रह अपना प्रभाव देते हैं जिससे कि मनुष्य का शरीर उपयुक्त पदार्थों के सेवन में अनियमितता बरतता है एवं बीमार हो जाता है एवं ग्रहों के अनुकूल स्थिति में होने पर ही ठीक होता है अन्यथा मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट पाता है।

आयुर्वेद में रोग उत्पत्ति के कारणों का उल्लेख मिलता है कि मनुष्य के पूर्व कर्म ही उसके रोगों का मुख्य कारण होते हैं कभी-कभी पूर्व के एकत्रित कर्मों के कारण से एवं दोषों के प्रकोप से और कभी दोनों से ही पित्त एवं कफ जनित शारीरिक एवं मानसिक रोग होते हैं।

ज्योतिष के द्वारा यह जाना जा सकता है कि व्यक्ति को कौन-कौन से शारीरिक रोग एवं कष्ट भविष्य में संभावित हैं।

उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि आयुर्वेद भी नवग्रहों से अलग नहीं है क्योंकि नवग्रहों का प्रभाव सजीव एवं निर्जीव दोनों पर ही बराबर पड़ता है एवं इनके प्रभावों से कोई नहीं बच सकता। इसकी जानकारी वैदिक ऋषियों ने वैदिक काल में ही कर ली थी।

कालान्तर से ही विद्वानों की जिज्ञासा इन ग्रहों की गति, स्थिति एवं मानव जीवन पर होने वाले प्रभावों के बारे में अधिक से अधिक जानने की रहती है। ज्योतिष शास्त्र हमारे ऋषियों का एक प्रमाणिक एवं वैज्ञानिक शास्त्र है जिसका उद्भव वेदों से हुआ है।

ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इन ग्रहों का प्रभाव प्रत्येक जीव पर पड़ता है। ये प्रभाव प्रत्यक्ष या कुछ परोक्ष होते हैं। जीव को जन्म से मरण तक इन प्रभावों को सहन करना होता है। प्रत्यक्ष प्रभाव चन्द्रमा के द्वारा ज्वार-भाटा का उत्पन्न होना होता है चन्द्रमा जल को प्रभावित करते हैं एवं मानव शरीर में 75 प्रतिशत जल होता है। इस प्रकार मनुष्य के शरीर के संचालन में चन्द्रमा का बहुत बड़ा योगदान होता है। चन्द्रमा के द्वारा ही मनुष्य का शरीर, मन एवं मस्तिष्क का प्रभावित होना सहज और स्वाभाविक होता है। मानसिक रोग से विक्षिप्त रोगियों के लक्षण पूर्णिमा की रात्रि में ज्यादा बढ़ जाते हैं संसार भर में अधिकांश आत्महत्याऐं एवं मृत्यु की घटनाएं पूर्णचन्द्र की स्थिति में ही होती हंै। इसी प्रकार से सूर्यादि ग्रहों के प्रभाव भी होते हैं।

हमारे दिमाग में अनेक प्रश्न उभरते हैं कि दुर्घटनाएं क्यों होती हैं? गृह कलह क्यों होती है? कुछ ही व्यक्ति सम्पन्न क्यों होते हैं? व्यक्ति दाम्पत्य सुख, पुत्र सुख आदि से वंचित क्यों रहता है आदि। इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है वह है ग्रहों के शुभ एवं अशुभ प्रभावों का जातक पर पड़ना। ग्रह स्थिति और भावाधिपत्य के परिणाम स्वरूप अच्छा एवं बुरा प्रभाव देते हैं। यदि ग्रह खराब दृष्टि या अनिष्ट स्थान से युक्त हों तो अपने फल के स्वरूप में वे व्यक्ति को कष्ट प्रदान करते हैं। इसके विपरीत शुभ दृष्टि या अच्छे स्थानों पर होने पर व्यक्ति के सुख-सौभाग्य, समृद्धि में वृद्धि करते हैं। पुराणों के अनुसार भू-लोक में ही नहीं वरन् देवता, दानव,यक्ष, गंधर्व आदि भी इन ग्रहों के प्रभाव से नहीं बच पाते। इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से राजा सौदास को नहीं चाहते हुये भी नर मांस का भक्षण करना पड़ा। राहु के प्रभाव से ही राजा नल को वनवास भोगना पड़ा। भगवान गणेश जी को शनिदेव के कारण गोबर में निवास करना पड़ा था तथा भगवान शिव को भी शनिदृष्टि से बचने के लिए कैलाश छोड़कर, हाथी बनकर वन में विचरण करना पड़ा था।

अंगारक विरोधेन रामों राष्ट्रनिरोधितः।

अष्टयेन शशंकेन हिरणाकश्यपुर्भृतः।।

इसी प्रकार मंगल के प्रभाव से भगवान श्री राम को भी राज्याभिषेक से वंचित होकर वनवास जाना पड़ा था तथा अष्टम भावस्थ चन्द्रमा के प्रकोप से हिरण्याकश्यपु का हनन हुआ। इसी प्रकार सप्तम भाव में अशुभ मंगल के कारण श्री राम को दाम्पत्य सुख से वंचित रहना पड़ा था।

रविणा सप्तमस्थे, रावणौ निपातितः।

गुरुणा जन्मसंस्थेन, हती राजा दुर्योधन।।

जन्मकुण्डली के सप्तमस्थ सूर्य के प्रकोप से रावण का सपरिवार हनन हुआ तथा लग्न के अशुभ बृहस्पति के कारण दुर्योधन की मृत्यु हुई। बुध की पीड़ा से पाण्डवों को दास वृत्ति का सामना करना पड़ा तथा षष्ठ भावस्थ शुक्र के अनिष्ठ प्रभाव से युद्ध में हिरण्याक्ष मारा गया।

जब-जब ग्रहों का अशुभ प्रभाव जातक पर पड़ता है तो उपयुक्त औषधि भी अपना अनुकूल प्रभाव प्रकट नहीं कर सकती, यदि उचित चिकित्सा करनी है तो पहले ग्रहों को अनुकूल बनाना चाहिये, तत्पश्चात् रोगी की चिकित्सा करनी चाहिये अर्थात् ग्रह शान्ति के बाद ही औषधियाँ कारगर सिद्ध होती है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्राणी मात्र पर, विशेष रूप से मानव जाति पर नवग्रहों के शुभ एवं अनिष्ट प्रभाव पड़ते हैं इन शुभ एवं अशुभ प्रभावों के परिणाम स्वरूप मनुष्य के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते है, जिनका समाधान मात्र ग्रह शान्ति से ही सम्भव होता है।

 

नक्षत्र पुरुष

चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का महत्व नव संवत् के आरंभ को बताता है। इसी तिथि से चैत्र शुक्ल के प्रथम नौ दिन नवरात्र कहलाते हैं। माह की अष्टमी के दिन एक विशेष व्रत आरंभ होता है, जिसे नक्षत्र पुरुष व्रत कहते हैं। भृगु ऋषि ने अपने समस्त पापों का नाश करने के लिए, अरुन्धती ने प्रसिद्धि के लिए तथा आदित्य ने पुत्र की कामना से किया था। पुरूरवा ने नक्षत्र पुरुष नामक व्रत के द्वारा लक्ष्मीपति वासुदेव की आराधना की थी।

नक्षत्र-पुरुष क्या है?

जिस प्रकार कालपुरुष से जन्मपत्रिका के 12 भावों से मानव जीवन के सभी विषय देखे जाते हैं तथा कालपुरुष के प्रत्येक अंग से मानव शरीर का प्रत्येक अंग, ठीक उसी प्रकार भगवान विष्णु के रूप में एक नक्षत्र पुरुष का उल्लेख वामन पुराण में मिलता है। वास्तव में भगवान विष्णु ही नक्षत्र पुरुष हैं।

नक्षत्र पुरुष का स्वरूप

मूल नक्षत्र में भगवान विष्णु के दोनों चरण, रोहिणी नक्षत्र में दोनों जंघाएं एवं अश्विनी नक्षत्र दोनों घुटने हैं।

पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा दोनों नक्षत्र उनके ऊरू, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी दोनों गुह्य प्रदेश और कृत्तिका नक्षत्र कटि भाग है।

पूर्वाभाद्रपद तथा उत्तराभाद्रपद दोनों पार्श्व, रेवती दोनों कुक्षियाँ, अनुराधा हृदय तथा धनिष्ठा पृष्ठ प्रदेश, विशाखा दोनों भुजाएं, हस्त दोनों हाथ, पुनर्वसु उनकी अंगुलियां तथा आश्लेषा उनके नाखून हैं। ज्येष्ठा ग्रीवा, श्रवण दोनों कान तथा पुष्य उनका मुख है।

स्वाति नक्षत्र दाँत, शतभिषा हनुएँ तथा मघा नासिका है।

विष्णु भगवान के दोनों नेत्र मृगशिरा नक्षत्र, चित्रा ललाट, भरणी सिर तथा आर्द्रा केश हैं। इन 27 नक्षत्रों से भगवान विष्णु  का सम्पूर्ण शरीर बना है। मानव शरीर में भी नक्षत्र निम्न अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं- इसके साथ ही यह कहा जा सकता है कि विष्णु जी ही नक्षत्र पुरुष है, उनके विभिन्न अंग मानव शरीर के अंगों से जुड़े है-

नक्षत्र            शरीर के अंग

अश्विनी           घुटने

भरणी            सिर

कृत्तिका            बगल

रोहिणी            टांग

मृगशिरा           आँखें

आर्द्रा             केश (बाल)

पुनर्वसु            अंगुलियाँ

पुष्य             मुख

आश्लेषा            नाखून

मघा             नाक

पूर्वाफाल्गुनी         गुप्तांग 

उत्तराफाल्गुनी        गुप्तांग

हस्त             हथेलियाँ

चित्रा             ललाट

स्वाति            दाँत

विशाखा           हाथ

अनुराधा           हृदय

ज्येष्ठा             ग्रीवा

मूल              पैर

पूर्वाषाढ़ा           जांघ  

उत्तराषाढा          जांघ

श्रवण             कान

धनिष्ठा            पीठ

शतभिषा           ठोडी

पूर्वाभाद्रपद         बगल (पार्श्व)

उत्तराभाद्रपद        बगल (पार्श्व)

रेवती             कुक्षि

संभवतः रोगों की उत्पत्ति, उपचार तथा मानव शरीर के अंगों पर नक्षत्रों का आधिपत्य उपचार ज्योतिष का विषय है। शरीर की त्वचा यदि स्वस्थ हो तो व्यक्ति मन से भी स्फूर्ति का अनुभव करता है। शतपथ ब्राह्मण में उल्लेख मिलता है कि नक्षत्र वास्तव में मानव शरीर की त्वचा के छिद्र हैं।

हमारे शरीर की त्वचा के जो तंतु हैं, वह विश्वेदेव के हैं तथा जो त्वचा के छिद्र हैं, वह नक्षत्रों के है। वास्तव में रोमावली के निर्माता तथा त्वचा के छिद्रों के अधिष्ठाता नक्षत्र ही हैं, अतः यह कहा जा सकता है कि छिद्रों के देवता इस विशेष वस्त्र की पकड़ में है।

जिस प्रकार लाए गए नए वस्त्र को पहनने से पूर्व उसको धोया जाना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार त्वचा के छिद्रों से यदि पर्याप्त रूप से पसीना न निकले तो व्यक्ति रोगी हो जाता है।

अतः कालपुरुष की भाँति नक्षत्र पुरुष की कल्पना वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों के महत्व को दर्शाती है। ईश्वर ने मानव को बुद्धि प्रदान की है, जिस कारण वह वस्त्रों को धारण कर अपने शरीर की त्वचा को ढ़क कर पूर्णता को प्राप्त कर सके।