अगरतला, 10 सितंबर (भाषा) त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने कहा है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नीत वाममोर्चा 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लोकलुभावन प्रचार अभियान का मुकाबला नहीं कर पाया।

भाजपा के पास राज्य में दो प्रतिशत से भी कम मत प्रतिशत था और उसने 2018 में वामदलों की 25 साल पुरानी सरकार को उखाड़ फेंका था।

भाजपा को इस चुनाव में 60 सदस्यीय विधानसभा में 36 सीट मिली थीं।

सरकार ने शुक्रवार को माकपा के एक कार्यक्रम में कहा कि चुनाव से पहले भाजपा ने अपने घोषणापत्र में शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग को लागू करने, युवाओं के लिए रोजगार और मनरेगा के तहत गरीबों को और अवसर प्रदान करने का वादा किया था।

नेता प्रतिपक्ष सरकार ने कहा कि त्रिपुरा में दो लाख सरकारी कर्मचारी और पेंशनभोगी हैं। उन्होंने दावा किया कि भाजपा ने समाज के सभी वर्गों को लक्षित कर अपने घोषणापत्र में जिस तरह के सपने दिखाये थे, उससे लोग भ्रमित हुए।

सरकार ने कहा, “त्रिपुरा में कम्युनिस्टों को हराने के लिए सभी वाम विरोधी राजनीतिक ताकतें भाजपा की छत्रछाया में चली गईं। हम भाजपा के फर्जी वादों के बारे में लोगों को समझा नहीं पाए।”

उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संगठन के बलबूते चुनाव में जीत हासिल की। सरकार ने दावा किया कि केंद्रीय खुफिया एजेंसियां और भाजपा की अपनी आंतरिक समीक्षा में पता चला था कि त्रिपुरा में पार्टी की हालत खराब है।

उन्होंने कहा, “उन्हें पता है कि अगर भाजपा वर्तमान चेहरों के साथ चुनाव लड़ती है तो उसे 2023 के विधानसभा चुनाव में नुकसान होगा। इसलिए मुख्यमंत्री (बिप्लब देब), जिन्होंने दावा किया था कि वह 2047 तक पद पर रहेंगे, को अचानक हटा दिया गया।’’

सरकार ने आरोप लगाया कि भाजपा ने लोगों के साथ विश्वासघात किया है और उसने जो वादे किए थे, उन्हें पूरा करने में भाजपा विफल रही है।